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भव से तर जाओगे

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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पितृ पक्ष विशेष….

बना-बना कर माल-मलीदा बैठ ठाठ से खाते हो,
नाम पितृदेवों का ले कुत्तों को खीर खिलाते हो।

जीते जी पूछा नहीं जिन्हें मरने पर दु:ख जतलाते हो,
ये कैसा श्राद्ध,बुजुर्गों को अब कौआ तुम बतलाते हो।

यदि श्राद्ध मनाना है तुमको निर्बल की जाय सहाय करो,
लावारिस फिरती गौ माता उनके भोजन की फिकर करो।

भूखे को भोजन देकर के यदि श्राद्ध पक्ष मनाओगे,
सच कहता हूँ पितरों के संग खुद भी भव से तर जाओगे।

झूठे आडंबर खत्म करो,क्यों उनको धोखा देते हो,
ले नाम बुजुर्गों का अपनी ही काया को सुख देते हो।
हो तुम्हें मनाना श्राद्ध अगर मन वचन कर्म से दान करो,
जो निर्बल हैं असहाय जरा तुम जाकर उनकी पीड़ हरो।

असहायों की आशीष मिली तो पाप सभी कट जाएंगे,
ये सुकर्म करते देख तुम्हारे पितृ तृप्त हो जाएंगे॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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