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महिला सशक्तिकरण:राक्षसी सोच को मारना जरुरी

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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नारी और जीवन (अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस)….

आज के आधुनिक समय में महिला सशक्तिकरण एक विशेष चर्चा का विषय है। हमारे आदि-ग्रंथों में नारी के महत्व को मानते हुए यहाँ तक बताया गया है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:” अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है,वहाँ देवता निवास करते हैं,लेकिन विडम्बना तो देखिए कि,नारी में इतनी शक्ति होने के बावजूद भी उसके सशक्तिकरण की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का अर्थ उनके आर्थिक फैसलों,आय,संपत्ति और दूसरे वस्तुओं की उपलब्धता से है। इन सुविधाओं को पाकर ही वह अपने सामाजिक स्तर को ऊँचा कर सकती है। महिलाओं को कई क्षेत्र में विकास की जरुरत है।
भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाली उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है,जैसे-दहेज प्रथा,अशिक्षा,यौन हिंसा,असमानता, भ्रूण हत्या,महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा,वैश्यावृति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय।
अपने देश में उच्च स्तर की लैंगिक असमानता है। जहाँ महिलाएँ अपने परिवार के साथ ही बाहरी समाज के भी बुरे बर्ताव से पीड़ित है। भारत में अनपढ़ों की संख्या में महिलाएँ सबसे अव्वल है।
नारी सशक्तिकरण का असली अर्थ तब समझ में आएगा,जब भारत में उन्हें अच्छी शिक्षा दी जाएगी।
स्त्री को सृजन की शक्ति माना जाता है। अर्थात स्त्री से ही मानव जाति का अस्तित्व माना गया है। इस सृजन की शक्ति को विकसित-परिष्कृत कर उसे सामाजिक,आर्थिक,राजनीतिक न्याय,विचार, विश्वास,धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,अवसर की समानता का सु-अवसर प्रदान करना ही नारी सशक्तिकरण का आशय है।
दूसरे शब्दों में महिला सशक्तिकरण का अर्थ महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है,ताकि उन्हें रोजगार,शिक्षा,आर्थिक तरक्की के बराबरी के मौके मिल सकें,जिससे वह सामाजिक स्वतंत्रता और तरक्की प्राप्त कर सकें।
आसान शब्दों में महिला सशक्तिकरण को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना ही महिला सशक्तिकरण है।
भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता के बहुत से कारण सामने आते हैं। प्राचीन काल की अपेक्षा मध्य काल में भारतीय महिलाओं के सम्मान स्तर में काफी कमी आई। जितना सम्मान उन्हें प्राचीन काल में दिया जाता था,मध्य काल में वह घटने लगा था।
आधुनिक युग में कई भारतीय महिलाएँ कई सारे महत्वपूर्ण राजनीतिक तथा प्रशासनिक पदों पर पदस्थ हैं,फिर भी सामान्य ग्रामीण महिलाएँ आज भी अपने घरों में रहने के लिए बाध्य है और उन्हें सामान्य स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा जैसी सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं है। शिक्षा के मामले में भी भारत में महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा काफी पीछे हैं। भारत में पुरुषों की शिक्षा दर ८१.३ प्रतिशत है,जबकि महिलाओं की शिक्षा दर मात्र ६०.६ ही है। भारत के शहरी क्षेत्रों की महिलाएँ ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक रोजगारशील है। भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता का एक और मुख्य कारण भुगतान में असमानता भी है। एक अध्ययन में सामने आया है कि समान अनुभव और योग्यता के बावजूद भी भारत में महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा २० प्रतिशत कम भुगतान दिया जाता है।
हमारा देश काफी तेजी और उत्साह के साथ आगे बढ़ता जा रहा है,लेकिन इसे हम तभी बरकरार रख सकते हैं,जब हम लैंगिक असमानता को दूर कर पाएं।
भारत की लगभग ५० प्रतिशत आबादी केवल महिलाओं की है। मतलब,पूरे देश के विकास के लिए इस आधी आबादी की जरुरत है जो अभी भी सशक्त नहीं है और कई सामाजिक प्रतिबंधों से बंधी हुई है। ऐसी स्थिति में हम नहीं कह सकते कि भविष्य में बिना हमारी आधी आबादी को मजबूत किए हमारा देश विकसित हो पाएगा।
भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान देने के लिए माँ,बहन,पुत्री,पत्नी के रुप में महिला देवियों को पूजने की परंपरा है,लेकिन आज केवल यह एक ढोंग मात्र रह गया। ऐसे बड़े विषय को सुलझाने के लिए महिलाओं सहित सभी के लगातार सहयोग की जरुरत है। आधुनिक समाज महिलाओं के अधिकार को लेकर ज्यादा जागरुक है,जिसके सुपरिणाम सामने आ रहे हैं।

परिचय–प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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