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माया मिली ना राम, क्या होगा…

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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राजनीति की गलियों में चुनाव के समय सब अपने-अपने स्तर पर गोटी फिट करने में लगे रहते हैं, क्योंकि जहां आस है, वहीं विश्वास भी है। शोर-शराबे की दहलीज को पार कर अमर्यादित टिप्पणी व भाषाओं के तर्पण में ‘मत’ की तलाश में रहते हैं लोग…, क्योंकि शतरंज की राजनीतिक चालों में शह और मात का खेल बहुत पुराना है। ऐसे में साम, दाम, दण्ड, भेद को रचाते हुए चाचा जी भी चुनाव में खड़े हुए। उनकी पार्टी के शोरगुल में लोग देखते रह गए। इन्हीं सब बातों के बीच चाचा गयाप्रसाद जी का भतीजा भी इस चुनावी समर में डुबकी लगाने हेतु कूद गया पानी में।साथियों ने बोला- “क्या होगा बबुआ रमाकांत, तुम भी कूद पड़े राजनीति के इस सागर में।”

“हाँ भाई, जब चाचा धमाल मचा रहे हैं, तो हम क्यों पीछे रहे ? राजनीति के इस हवन कुंड में यज्ञ करने का अधिकार तो सभी का है। देखा नहीं वहाँ आसमान से दूर देश से आए पी के यानी पंकज कुमार भी अपना भाग्य आजमा रहे हैं, तो हम क्यों नहीं।”
“लेकिन भैय्या पुरानों की तो फ़ौज है, चारों और से घी कड़ाई में चाचा के तो ऐसे आप की नैया कैसे पार होगी।”
“अरे बिरजू भैय्या, आप तो बहुत सोचते हो। राजनीति में तो भाई किस्मत का सितारा ही बुलंद होना चाहिए। जनता अपने-आप पसंद कर काम करने वाले प्रत्याशी को मत देती है। मतदाता का रुझान नहीं दिलों के अंदर हमारी छवि अच्छी होनी चाहिए।”
“अरे नहीं भैय्या, आज-कल तो काम करने वाले की बलिहारी होती है। विकास के साथ जनता का फायदा जो करता है, और उन्हें जो काम-धंधा देता है, वही राज करता है। जमाना बदल रहा है देखो।”
इसी बीच चाचा बोलते हैं, “क्या बात है, राजनीति की डगर में बहुत लोग आ गए। अपने भी पराए भी डुबकी लगाने।”
चुनावी प्रचार-प्रसार होने के बाद परिणामों की बांट देख रहे हैं, तभी भतीजा बोलता है, “देखना हमारी पार्टी का रंग प्रदेश में देखने को मिलेगा…।
इस बीच चाचा कहते हैं, “बबुआ तुम तो इतना ऊँची उड़ान उड़े जा रहे हो।”
“क्यों नहीं उड़ें हम, हमारा दौर है, आप तो उम्र की दहलीज पर हो, घर बैठो। राजनीति अब नहीं होगी आपसे।”
“देखते हैं बबुआ, कितना जोर है, देखता हूँ मैं भी।”
“अरे बिरजू भैय्या, हँसी-ठिठोली बहुत हो चुकी। कल परिणाम आएंगे। चलो आज जल्दी चलते हैं, सुबह मतगणना है।”
सभी महारथी, सारथी सब चल दिए…। मतगणना स्थल पर रुझानों के बीच साँसें ऊपर-नीचे होने लगी। तभी सभी समर्थक ढोल नगाड़े के साथ चाचा जी को फूल माला पहना रहे थे। इस घटनाक्रम को पंकज कुमार और भतीजा भी देख रहा था। गिनती में तेजी आई और चाचा ने जीत का परचम लहरा दिया। इन्हीं सबके चलते स्वागत-सत्कार के बीच मतगणना स्थल से बाहर निकलते हुए, “चाचा जी, भतीजे का अभिवादन भी स्वीकार कीजिए।” तभी चाचा तुरंत बोले, “क्यों भाई भतीजे, माया मिली ना राम… अब क्या होगा। तुम तो बहुत जोर-शोर से पनघट की डगर पर आए थे, और बिना डुबकी लगाए ही घर जा रहे हो। चलो हम चलते हैं, कल विधानसभा भवन जाएंगे सुबह सभी जीते हुए साथी। दोपहर में शपथ लेना है और जनतंत्र के सारथी बन फिर कर्म करते जाना है। रमाकांत तुम भी आ रहे हो ना कल कार्यक्रम में…।”
“हाँ हाँ, चाचा जी जरूर आएंगे। यह तो ख़ुशी का पल है।”
चाचा जी चले गए। तभी भतीजे रमाकांत के दोस्त व अन्य साथीगण आपस में मुलाकात करते हैं। एक दोस्त बोलता है, “देखा भाईयों बुजुर्ग व हमारे बड़े-बूढ़े आस के पक्षी होते हैं। उनके अनुभव के बल पर दिमाग से फिर जीत गए, हमें तो ना माया मिली, ना राम…।