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मुझे भी इतिहास बनाना है…

डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी (राजस्थान)
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‘इतिहास’, वह विषय जो समय की धूल में अपनी गौरव गाथाएँ समेटे रहता है, पर पता नहीं क्यों, कभी इतिहास ने मुझे इस पर गर्व करने का मौका नहीं दिया। मैं यहाँ अपने निजी इतिहास की बात कर रहा हूँ, आप शायद इसे गलत समझ रहे होंगे। मेरे देश का इतिहास तो वास्तव में स्वर्णिम अक्षरों में मेरे हृदय पटल पर विराजमान है। यहाँ समस्या यह है कि, भले ही देश और विश्व का इतिहास मेरे हृदय पटल पर अंकित हो, मुझे इस पर गर्व भी होता है, जब भी देश के इतिहास का नाम सुनता हूँ, मेरे रोम-रोम में बसे हुए रोंगटे भी खड़े हो जाते हैं, लेकिन यह इतिहास हमेशा मेरे हृदय पटल पर ही रहा, कभी मेरे मस्तिष्क पटल पर नहीं घुस पाया।
या यूँ कहें कि, शायद बचपन में ही किसी प्रेरक वक्ता ने मुझे ज्ञान की घुट्टी पिला दी थी, कि इतिहास पढ़ना नहीं है बेटा, इतिहास बनाना है, इतिहास गढ़ना है! बस तभी से इतिहास बनाने में लगा हूँ, इससे पहले कि खुद इतिहास हो जाऊँ!
स्कूल के समय से ही, जब इतिहास की पुस्तक मेरे बैग में घुसी, वह मेरी पत्नी की अलमारी में पड़ी साड़ियों की तरह कभी-कभार ही बाहर निकली। और जब भी बाहर निकली, मैं इसके पहले पन्ने को देखकर ही इतना मंत्रमुग्ध हो जाता कि, नज़रें वहीं अटक जाती हैं, दूसरा पन्ना पलटने का मौका ही नहीं मिलता। हमारे इतिहास के मास्टर, जिन्हें हम ‘मारसाहब’ भी कहते थे, क्योंकि वो मारते बहुत थे, इतिहास को रटाने में कसर नहीं छोड़ते। खुद चूंकि, पास के एक गाँव से ही आते थे, उनके बहुत बड़े खेत थे। खेत में रबी और खरीफ दोनों ही फसलों की पैदावार होती, कुआं भी था, कुएं में इंजन भी था। घरवाले उनकी मास्टरी की टुच्ची-सी नौकरी से ज्यादा प्रभावित नहीं थे और पूरी रात उन्हें उनके पुश्तैनी काम-धंधे यानी कि खेतों में कूड मोड़ने के काम में लगाए रखते (कूड मोड़ने का मतलब-खेतों में पानी देना, जहाँ क्यारियों में पानी के बहाव को बदल कर हर क्यारी में पानी पहुँचाना होता है)। बेचारे ‘मारसाहब’ कूड-मोड़ते जाते, और अपना खुद का इतिहास ताक पर रख देते, और दिन में स्कूल आते वक्त उनींदे से क्लास में घुसते।
बच्चों को इतिहास के किसी मुगल खानदान के बिगड़ैल नबाब का चैप्टर खोलने के लिए कहते, एक बच्चे को किताब के साथ खड़ा कर देते, जिसकी आवाज़ गाँव में होने वाले कीर्तनों में गा-गाकर काफी ऊँची हो गई थी। उसे इतिहास दोहराने के लिए कहा जाता और सारे बच्चे कोरस में उस इतिहास को दोहराते। इस तरह किसी न किसी मुगलाई नबाब की कब्र रोज खोदी जाती। और मार साहब खुद कुर्सी में धम्म से बैठकर नींद के आगोश में डूब जाते। इतिहास के चल रहे पाठ में बीच-बीच में अपने खर्राटों से हुंकार भरते रहते, ताकि बच्चों को पता रहे कि मारसाहब अभी क्लास में ही हैं, दिवंगत नहीं हुए हैं।
मैं वेब ब्राउज़र में दिनभर का पढ़ा हुआ सारा इतिहास डिलीट कर देता हूँ। क्या करें, घर में बीवी-बच्चे हैं, उन्हें पता चले कि, दिनभर में इस वेब जाल ने मुझे क्या-क्या परोसा है। पता नहीं, कृत्रिम बुद्धिमत्ता भी अपने तरीके से सोचने लगी है। इसे कैसे पता चल जाता है कि, मुझे पड़ोस की आंटी पसंद आ गई। वो ऐसे ही बड़े लुभावने से आंटी जैसे सुपर ऑफर मेरे डेस्क टॉप पर उड़ेल देता है। उसे पता लग गया है-मुझे लोन की जरूरत है तो उसके पास लुभावनी ईएमआई के क्रेडिट कार्ड के ऑफर हैं। वो मुझे घुमाना भी चाहता है तो मुझे बैंकॉक, थाईलैंड ऐसी जगह घुमाना चाहता है, जिसके नाम भी परिवार में पता लग जाए तो भूचाल आ जाए। अब दोस्तों के साथ बैठ बातचीत करें तो वो भी इन्हीं जगहों का सुझाव देते हैं। मन में उत्सुकता तो रहती है आखिर क्या है ये बवाल! ये दोस्त जो किसी न किसी प्रोडक्ट की एजेंसी लिए हुए है, और कंपनियाँ भी जानती हैं कहाँ इनके ठरकीपन की आग बुझ सकती है, इसलिए इन्हें ऐसी जगह ही ले जाया जाता है। एक बार ऐसे ही जब उनके नमक-मिर्ची के चटखारे लगा कर विदेश भ्रमण की दास्तानें किसी मीटिंग में सुनाई गईं, तो हमने एक दिन उत्सुकतावश इस धार्मिक कंट्री का नाम गूगल पर टाइप ही कर दिया तो फिर गूगल बाबा बहुत भावुक हो गया, और फिर महीनों तक मुझे बैंकॉक, थाईलैंड के लुभावने ऑफर दिखाता रहा। गूगल बाबा सुनता किसी की नहीं है, लेकिन सबको अपनी जरूर सुनाता है, बिलकुल बीबी की तरह!
अब ये तब तकनीक के खतरे (हजार्ड) हैं, झेलने ही पड़ेंगे। सब कुछ तो है ना, मुझे लुभाने के लिए। लगता है जैसे कम्प्यूटर नहीं हुआ, मेरी दूसरी बीवी हो गई जो मेरे हर मूड का विशेष ख्याल रखती है। खैर, कम्प्यूटर के इस अति उत्साहित सेवा-भावी कार्य से मेरा परिवार तो शायद खुश नहीं होगा, इसलिए मैं उस इतिहास को मिटाना ही चाहता हूँ। स्कूल में तो इतिहास के पेपर को जैसे-तैसे नकल प्रक्रिया से पार कर लेते। फर्रे, जो कि हमारे इतिहास की डूबती नैया को पार कराने के लिए छात्रों और शिक्षकों की मिलीभगत से एक सामुदायिक सहयोग की भावना से आदान-प्रदान होते रहते थे।
वर्तमान समय में, हर कोई नया इतिहास रचने में लगा है। रिकॉर्ड तोड़ने में लगा है, विभिन्न संस्थाएँ ऐसे कामों में जुटी हैं, जो इतिहास में पहले कभी नहीं हुए। जैसे धार्मिक रैली में हर बार कलशों की संख्या उच्चतम स्तर पर, महा आरती में दीपकों की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर। सरकार भी इतिहास बना रही है घोटालों का इतिहास, घोटालों में डकारी गई रकम का इतिहास, बलात्कारी, भ्रष्ट नेता, बिजनेसमैन अपने-अपने स्तर पर, अपने कौशल और प्रतिभा के दायरे में की गई कारस्तानियों की गंध फैलाकर इतिहास पर इतिहास बनाए जा रहे हैं। आदमी तो आदमी, धरती, चाँद, सितारे, जल, वायु, सब इसी होड़ में लगे हैं। सूरज ने गर्मी के तेवर दिखाने का नया इतिहास बनाया है, धरती ने भूकम्प की तबाही के रिकॉर्ड तोड़े हैं, आकाश ने बाढ़ की तबाही के।

जल ने अपने-आपको इतना नीचे गिरा लिया है कि, पाताल लोक तक चला गया। कोई प्राचीन इतिहास से संतुष्ट नहीं हैं और इसे बदलने की कोशिश में लगे हुए हैं। यहाँ तक कि, हमारे स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भी कई लोगों को पसंद नहीं आ रहा है, और वे इसमें परिवर्तन लाने की दिशा में सक्रिय हैं। पुस्तकों और पाठ्यक्रमों में इतिहास को अपने-अपने तरीके से लिखा जा रहा है, जिससे एक नई परंपरा की नींव रखी जा रही है। सब जगह इतिहास से छेड छाड़, मसलन इतिहास नहीं हुआ, मोहल्ले की सविता भाभी हो गई, हर कोई इसे छेड़ना चाहता है।