सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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गहराता ही जा रहा है
यह ख़ूनी उन्माद,
कब तक चलेगा यह
निर्मम आतंकवाद ?
रह-रह कर डसने को
सिर उठाते हैं,
कितनों के प्राण ये
विषधर लिए जाते हैं।
चुन-चुन कर हिन्दुओं को
अपना निशाना बनाया है,
इन दहशतगर्दों ने
कपड़ा तक उतरवाया है।
ख़ुशहाली कश्मीर की
इनसे देखी नहीं जाती,
पहलगाम की हरियाली
इनको पसंद नहीं आती।
निर्मम हत्या का बन रहा
षड्यंत्री आधार जहाँ,
दहशतगर्दी ही हो रहा
सबसे बड़ा ईमान वहाँ।
बातचीत का समय नहीं
अब गोली ही खाना,
‘अल्लाह हू अकबर’ कह
कह कर खूब जश्न मनाना।
जो होली ख़ून की खेली
शिकारी को पकड़ना है,
जब होगा मौत का तांडव
तो उसको भी दिखाना है।
दुखी मन आज मेरा,
देखकर यह मृत्यु का नर्तन।
बहुत हूँ क्षुब्ध करती प्रार्थना,
हो कंस का मर्दन॥