शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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मेरे
बचपन का घर,
कहीं
सुदूर गाँव में,
पेड़ों की छाँव में
कच्चा पुराना,
मेरी यादों का घर
छिप गया जाने कहां ?
स्वप्न सुहाना किधर ?
मेरे बचपन का घर…!
नटखट कदमों में,
कूकता था
मेरे घर का वो आँगन,
खिलखिलाती धूप में
गूंजता मनभावन,
वो तोतली बोली
वो आँखों की अठखेली,
रागिनी छेड़े तन-मन पर
माँ की कोयल-सी बोली।
मेरे बचपन का घर…!
सुबह की,
पहली किरण का
आँगन में उतर आना,
पंछियों का कलरव करना
ठंडी हवा के झोंकों संग,
आम्र पतों का हिलना
जैसे पंछी की,
यादों में
घोंसला बन जाना।
घर की मिट्टी का,
सोंधी महक बन उड़ आना॥
मेरे बचपन का घर…!