सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
*****************************************
चाँद बन कर आप आए मेहरबानी आपकी।
आ के मेरे दिल पे छाए मेहरबानी आपकी।
किस क़दर बेनूर लगती थी मुझे हर शामे ग़म।
तीरगी में लड़खड़ाते थे मिरे अकसर क़दम।
नूर बन कर आप आए मेहरबानी आपकी।
आ के मेरे दिल पे छाए मेहरबानी आपकी॥
कितना तड़पाती थीं दिल को शब की ये तन्हाईयाँ।
नींद में भी आती रहती थीं मुझे अँगड़ाईयाँ।
ख़्वाब बन कर आप आए मेहरबानी आपकी।
आ के मेरे दिल पे छाए मेहरबानी आपकी॥
हर घड़ी बेचैन रहते थे मिरे क़ल्ब ओ जिगर।
रोते-रोते ही गुज़रते थे मिरे आठों पहर।
चैन बन कर आप आए मेहरबानी आपकी।
आ के मेरे दिल पे छाए मेहरबानी आपकी॥
चाँद बन कर आप आए मेहरबानी आपकी।
आ के मेरे दिल पे छाए मेहरबानी आपकी॥