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रचा हर जीवन प्रभु ने

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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रचा हर जीवन को प्रभु ने,
सुख-दु:ख जिसमें रहते।
सजाते मन के भाव इन्हें,
प्रभु जी मन परखा करते॥

हर कर्म किया करता जीवन,
जो भाग्य सजाया करते हैं।
हो भावना जैसी भी मन की,
वैसे ही भाग्य भी बनते हैं।
सुख-दुख रचकर मन भावों से,
जीवन को मिलते रहते हैं।
सजा लो मन की भावना को,
प्रभु जी सुख इनसे रचते।
रचा हर जीवन…॥

मन ईश हमेशा ही पूजे,
पर भाव न सजते ईश्वर के।
ईश्वर को बोध रहे इनका,
फल वे देते हैं रचकर के।
सुख की चाहत होती मन में,
पर कर्म विपक्षी बनते हैं।
बने जब कर्म भी चाहों से,
तब दुख भी नहिं बन सकते।
रचा हर जीवन…॥

बदलाव समय से होता है,
पर सोच बदल के भली ही बने।
तब जीवन सुखमय रहता है,
भलमनसाहत से दु:ख न बनें।
प्रभु की हर रचना न्यारी है,
धरती-अम्बर जो दिखते हैं।
युग-युग पहले ये जैसे थे,
वैसे ही अब भी दिखा करते।
रचा हर जीवन…॥

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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