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रामायण:स्त्री पात्र और उद्देश्य

राधा गोयल
नई दिल्ली
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कैकेयी…रामायण का एक ऐसा पात्र, जिससे सभी नफरत करते हैं। कोई अपनी पुत्री का नाम कैकेयी नाम पर नहीं रखना चाहता। कैकेयी…जो बेहद बुद्धिमान थी…युद्ध कला में निपुण थी…राम को अपने पुत्र से अधिक प्यार करती थी। राम में उसकी जान बसती थी। फिर ऐसा क्या हुआ कि उसने राज्याभिषेक वाले दिन ही राम को वन गमन के लिए कहा, जबकि वह राम के राज्याभिषेक के लिए सबसे अधिक आनन्दित और उत्साह से भरी हुई थी।
कैकेयी न केवल सुंदर थी… अपितु बहुत बुद्धिमान भी थी, रणकौशल में निपुण थी। स्वाभिमानी साम्राज्य कैकेय देश की राजकुमारी बेहद स्वाभिमानी भी थी। इस बात को सभी जानते हैं कि देवासुर संग्राम में इंद्र ने दशरथ को सहायता के लिए बुलाया था। रानी कैकेयी रणभूमि में दशरथ के साथ गईं थीं और उनके रथ की सारथी बनी थीं। उस महासंग्राम में दशरथ के रथ का चक्का टूट गया, जिसे रानी ने अपनी अंगुली डालकर संभाला।मुकुट गिर गया, जिसे बाली ने उपहार स्वरूप रावण को दे दिया। रावण वह मुकुट लंका ले गया।
रथ का चक्का संभालने से उस संग्राम में देवताओं की जीत हुई। सारथी योग्य हो तभी कोई युद्ध जीता जा सकता है। युद्ध की हार-जीत का निर्णय सारथी पर भी निर्भर करता है। उस समय राजा दशरथ ने कैकेयी से २ वरदान मांगने के लिए कहा, जिसे उसने यह कहकर टाल दिया कि ‘वक्त आने पर माँग लूँगी।’
राजा दशरथ का राजमुकुट रावण ने अपने पास रख लिया था, यह बात कैकेयी के हृदय में शूल की तरह हर समय चुभती रहती थी। किस प्रकार से राजा का मुकुट रावण से लिया जाए…उसका उपाय सोचती रहती थी। उसे यह भी मालूम था कि उस मुकुट को हासिल करना कोई आसान काम नहीं है। उसके लिए बहुत अधिक बाहुबल की जरूरत है। रावण बेहद पराक्रमी था। उसके पास अनेक मायावी शक्तियाँ थीं। उसके पुत्र मेघनाद ने इन्द्र को हरा दिया था। ऐसे शक्तिशाली राक्षसों से लोहा लेना इतना आसान काम नहीं था, लेकिन उससे मुकुट लेना भी उतना ही जरूरी था… क्योंकि एक स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए यह बड़े अपमान की बात है कि उसके पति का राजमुकुट अन्य व्यक्ति के शीश पर रखा हुआ हो और राजसभा में दशरथ की हार का डंका बजता रहे। कैकेयी इस बात को भूल नहीं पाती थी।
दशरथ के चारों पुत्र शास्त्र और शस्त्र विद्या में प्रवीण हो गए थे। गुरु विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को अपने साथ राक्षसों का अंत करने के लिए ले गए थे, क्योंकि असुर उनके यज्ञ, अनुष्ठान और अनुसंधान कार्यों में बाधा पैदा कर रहे थे। राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे दुर्दांत राक्षसों का वध किया। मारीच को एक तीर से लंका में फेंक दिया।ऋषि आश्रम से वापस आते समय पति द्वारा परित्यक्ता व समाज द्वारा तिरस्कृत व बहिष्कृत अहिल्या को उसका खोया हुआ सम्मान दिलाया।सीता स्वयंवर में शिव के विशाल ‘पिनाक’ धनुष को एक झटके में तोड़ दिया। जिस धनुष को महाबली हिला तक नहीं सके थे, तब राम ने गुरुआज्ञा से उस धनुष को उठाया। प्रत्यंचा चढ़ाने लगे तो धनुष टूट गया। तब कैकेयी को यह विश्वास हो गया कि राम ही वह व्यक्ति है जो दशरथ के मुकुट को वापस ला सकता है, लेकिन यह बात किसे बताए ? राम सभी को प्राणों से अधिक प्रिय थे। वैसे भी चारों पुत्र वृद्धावस्था में प्राप्त हुए थे। उस खुशी में उस अपमानजनक बात को वह भुला चुकी थी किंतु जब राम का पराक्रम देखा तो कैकेयी को पूरा विश्वास हो गया कि राम ही इस काम को कर सकते हैं, लेकिन यह भी मालूम था कि यदि किसी से भी इस बात को कहेगी तो कोई भी इस बात को मानने के लिए राजी नहीं होगा।
उसने उस अपमानजनक घटना को राम को बताया। राम से वचन लिया कि, “तुम इस बात का किसी से जिक्र नहीं करोगे। राजा ने मुझे २ वचन देने के लिए कहा था। मैं उन दो वचनों में तुम्हारे लिए वनवास और भरत के लिए अयोध्या का राज सिंहासन माँग लूँगी। ‘मुझे मालूम है कि मुझे इसके लिए घोर अपयश का भागीदार बनना पड़ेगा। मैं अपयश को भोगने के लिए तैयार हूँ लेकिन मैं चाहती हूँ कि तुम्हारे पिता का मुकुट… जो रावण के पास है… वह वापस मिले। अयोध्या नगरी का यश बढ़े।’ मैं यह भी जानती हूँ कि रावण को हराना इतना आसान नहीं है। वह महा पराक्रमी और महा मायावी है। इसीलिए मैंने तुम्हारे लिए वनवास का मार्ग चुना है ताकि तुम वनवासी लोगों का सहयोग प्राप्त कर सको। राजा राम बनकर वन में जाओगे तो तुम्हें कोई सहायता नहीं मिलेगी। तुम वनवासी कबीलों के लोगों से मैत्री संबंध स्थापित नहीं कर पाओगे। अपनी राजा की पहचान छुपाकर साधारण व्यक्ति बन कर जाओगे तो आदिवासी कबीलों से और वन में रहने वाले गुमनाम मगर बहादुर लोगों से सम्पर्क स्थापित कर पाओगे। वे लोग युद्ध में तुम्हारे सहायक होंगे। किषिकन्धा नगरी में बाली जैसा महाबलशाली राजा है। उसने भी देवासुर संग्राम में रावण की ओर से युद्ध किया था। उसका संहार किए बिना रावण को जीतना मुश्किल है।’
वो कैकेयी… जो राम के राज्याभिषेक से बेहद प्रसन्न थी, एक ही रात में कैसे बदल गई ? राम को तो वो भरत से भी अधिक प्यार करती थी। राम से अतिरिक्त प्यार के कारण वह उस अपमान को भुला चुकी थी, पर अब वो फाँस फिर से चुभने लगी थी। रावण के पास दशरथ का रखा मुकुट उसकी आत्मा को घायल करने लगा था। तभी उसने माँ सरस्वती से मार्गदर्शन का आव्हान किया। सरस्वती मंथरा की जिव्हा पर बैठ गईं और जो कुछ हुआ, उसे सभी जानते हैं। मंथरा और कैकेयी दोनों ही अपयश की पात्र बनीं। दशरथ की मृत्यु का कारण भी कैकेयी को माना गया, जबकि दशरथ तो पहले से ही शापित थे कि पुत्र शोक से दुःखी होकर उनका अंत होगा।
सभी ने यह भी पढ़ा होगा कि,-
‘रघुकुल रीत सदा चली आई,
प्राण जाएँ पर वचन न जाई।’
दशरथ पुत्र मोह में रघुकुल की रीत छोड़ने को भी तैयार थे। दशरथ और दोनों माताओं के बार-बार मना करने के बावजूद राम वन में गए। वन गमन के समय चेहरे पर खुशी थी। अपनी माता कौशल्या से भी यही कहा कि छोटी माँ ने मुझे असीमित राज्य का स्वामी बनने का आशीर्वाद दिया है। लक्ष्मण ने पिता के विरूद्ध विद्रोह करना चाहा, उसे शान्त किया।
भरत अपने भाई को मनाने के लिए प्रजा सहित वन में गए। सबने बहुत मनाया फिर भी राम नहीं माने। क्यों नहीं माने ?? तब तो माता कैकेयी ने भी उनसे अयोध्या लौटने का आग्रह किया था, फिर भी क्यों नहीं माने ? इसलिए नहीं माने क्योंकि उनका एक उद्देश्य था…अपने पिता का मुकुट वापस लाना।
कैकेयी सबकी निंदा का पात्र बनी रही। सभी उससे नफरत करते थे। भरत ने तो अपनी माता का त्याग भी कर दिया था, किन्तु राम ने अपनी सौगंध देकर भरत से कहा कि अपनी माता को क्षमा कर दे। लाख मनाने के बावजूद भी राम अयोध्या वापस लौट कर नहीं आए, कुछ तो कारण रहा होगा।
वर्षों तक वन में पैदल घूम-घूम कर देश की भौगोलिक परिस्थितियों को जाना। निषाद, भील, किरात, वन के वासी, वन नर,सुग्रीव व उसके मंत्रियों ऋक्षराज जाम्वन्त, हनुमान, नल-नील जैसे लोगों से मैत्री सम्बन्ध स्थापित किए। दुष्टों का दलन करने के लिए ‘शास्त्राग्रही राम’ शस्त्राग्रही राम बने।
शूर्पनखा की बेइज्जती का बदला लेने के लिए उसके भाई खर और दूषण ने दंडकारण्य में रह रहे राम पर अपने अति पराक्रमी सैनिकों के साथ आक्रमण किया, जिन्हें अकेले राम ने धूल चटा दी। दैत्यराज रावण अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए सीता का हरण करके ले गया। सीता को ढूँढते हुए राम ऋष्यमूक पर्वत पर पहुँचे, जहाँ बाली से पराजित सुग्रीव अपने मंत्रियों सहित रह रहा था।
बाली को मारे बिना रावण से मुकुट लाना संभव नहीं था, क्योंकि बाली जीवित रहता तो युद्ध में रावण का साथ देता। अतः राम ने एक तीर से दो शिकार किए। कूटनीति अपनाते हुए शत्रु के शत्रु से दोस्ती करके बाली का वध किया।
धनुष्कोटि से लंका तक नल नील ने समुद्र पर पुल बनाया। राम-रावण की सेना में घनघोर युद्ध हुआ।अंत में रावण का अंत हुआ।
राम… राजा राम से मर्यादा पुरुषोत्तम राम बने।कितने कवियों-महाकवियों ने उनकी प्रशंसा के गुणगान में प्रबन्ध काव्य व महाकाव्य रच डाले। राम जन-जन के पूजनीय भगवान राम बन गए। जिसके कारण भगवान बने, वह तो आज तक भी कलंकिनी बनी हुई है, सबकी निंदा का पात्र बनी हुई है।
यदि कैकेयी द्वारा राम को वनवास का असीमित राज्य न मिलता तो आज राम जन-जन के पूज्य भगवान नहीं होते। मर्यादा पुरुषोत्तम राम नहीं कहे जाते। रामायण की रचना भी नहीं होती। वो रामायण, जिसका न जाने कितनी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। कितने कवियों ने अलग- अलग ढंग से रामायण लिखी है। रामचरितमानस, वाल्मीकि रामायण, राधेश्याम की पद्यबद्ध रामायण और अनेक रामायण हैं। इस सबके पीछे किसका हाथ था ? राम को जन-जन का आराध्य बनाने में सबसे बड़ी भूमिका किसकी थी ? उसे सब भूल जाते हैं।
राम को वन भेजने के पीछे कैकेयी का क्या उद्देश्य था, इसको भी सब भूल जाते हैं। क्यों उसने अपने पुत्र भरत के लिए राज सिंहासन और राम के लिए वनवास माँगा ? पूरी अयोध्या क्या…पूरे भारत में आज तक वह निंदा का पात्र बनी हुई है। उस नारकीय अपमान को उसने जीते जी भोगा, किंतु उस लक्ष्य को प्राप्त कर लिया जिसके लिए उसने वनवास और राज्य माँगा था।
कैकेयी न होती तो राम भी अन्य कई रघुवंशी राजाओं की तरह गुमनाम रहते। रघुवंशी राजाओं की शौर्य गाथा में केवल चंद लोगों के नाम और उनकी कथाएँ लोगों को याद हैं। उन्हें भगवान कहकर कोई नहीं पूजता, लेकिन राम को तो पूरा भारत पूजता है। किसके कारण बने वो इतने पूजनीय ?? आओ जरा विचार करें।

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