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रिश्तों को बाँधिए नहीं

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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कहाँ गया रिश्तों में प्रेम…?…

कहाँ गया रिश्तों में प्रेम आज तनिक चिन्तन भी करने दें,
अपनापन मधुरिमा लोभ तम खुद के रिश्तों क्यों मरने दें
अति कोमल नाजुक किसलय सम रिश्ते होते हैं इस दुनिया,
मृगतृष्णा के मकड़जाल फँस रिश्ता डोर नहीं टूटने दें।

रिश्तों को बाँधिए नहीं, अनुभूति आत्मरस भरने दें,
गुलज़ार चमन खुशबू समरस, अपनत्व हृदय तल जमने दें
नव पादप रिश्ते नवांकुर, कोमल किसलय सम होता रिश्ता,
सीचें हरपल स्नेहिल जल से, नवांकुरित पौध तो बनने दें।

रिश्तों की कलियाँ है नाजुक, ममतांचल छाँवों पलने दें
अहसास मधुर हो अपनापन, सम्पुट कलियों को खिलने दें
रिश्तों की धारा सरिता सम, अविरल हो रिश्तों की धारा,
बस चाह राह सुख-दु:ख अपने, विश्वास परस्पर जमने दें।

हो कशिश चाह मन रिश्तों का, मुस्कान खुशी सुख होने दें,
जब आश जगे संभाव्य मधुर, रिश्ते उड़ान नव भरने दें
बस भीगो चासनी अपनापन, अरुणाभ प्रगति चढ़ने दें रिश्ता,
आशिकी बने माधुर्य बोध, उच्छ्वास मुक्त मन लेने दें।

दिलकशी सफल आहत राहत, रिश्ते गुलज़ार महकने दें,
बस चाह समादर संवेदन, अवसाद आह गम भरने दें।
विश्वास डोर मृदु अन्तर्मन, मत तनिक चोट से टूटे रिश्ता,
परवान चढ़े सोपान शिखर, रिश्तों को अन्तर्मन घुलने दें॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥