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रोज मर जाना श़गल इनका

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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रोज मरते हैं जो मय्यत भी सजा सकते हैं,
कैसे ज़िन्दा हैं वही लोग बता सकते हैं,

अपने मरने का जो अंदाज़ दिखा सकते हैं,
राज है क्या ये वही लोग बता सकते हैं।

रोज मरते हैं मगर शाम तलक फिर जिन्दा ?
ये किसी पर भी वो इल्ज़ाम लगा सकते हैं।

रोज मर जाना किसी हुस्न पर श़गल इनका,
दामन-ए-यार पर भी दाग लगा सकते हैं।

सिर्फ करते हैं मुहब्बत का ये वादा झूठा,
इनकी फितरत है ये सौगन्ध उठा सकते हैं।

इतने शातिर हैं कि कर देते कत्ल यारों का,
असलहा आपके दामन में छुपा सकते हैं।

ये लिए फिरते हैं खंज़र भी आस्तीनों में।
पीठ में घोंप कर खुद बात बना सकते हैं॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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