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१८ माह ने बहुत सिखाया

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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बीते १८ महीनों में हमने मानसिक तनाव बहुत झेला है। यह मानसिक कष्ट कई कारणों से रहा जिसमें प्रमुख रहा चीन पाकिस्तान के साथ युद्ध का भय व ‘कोरोना’ महामारी,परन्तु हम सभी यह भी जानते हैं कि हमारी सरकार ने चीन व पाकिस्तान दोनों पर अपना दबदबा बनाए रखा और कोरोना महामारी पर बहुत हद तक काबू भी पाने में सफल रही,लेकिन इन सभी के बीच बीते १८ महीने हम सभी को बहुत कुछ सिखा के भी गए हैं। उस शिक्षा ने हमारी सोच व कार्य पद्धति में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया है।
कोरोना के चलते जो पूर्ण तालाबन्दी हुई,उसमें सीमित संसाधनों में भी कैसे जी सकते हैं,सिखा दिया,तो तालाबन्दी के दरमियान हम घर की चारदीवारी में रहने के लिए आवश्यक संयम का महत्व सीख गए। बीते १८ महीनों ने हमें हर तरह की समस्या से संघर्ष करना भी सिखाया है। इसी तरह इसी बीते १८ महीनों ने हमें स्वयं का काम स्वयं करना चाहिए,के महत्व को बतला दिया। सच में देखा जाए तो देश में हमारे आस-पास स्वच्छता-सफाई,जिसका सरकार कई वर्षों से अभियान चलाए हुए थी,उसका सही अर्थों में महत्व १८ महीनों ने हमें बता दिया।
एक-दूसरे की मदद करना भी हमें बचपन से सिखाया गया है,लेकिन इसका महत्व भी बहुत ही बढ़िया ढंग से हमें बीते १८ महीनों में एक नए तरीके से सीखने को मिला है। मानसिक संतुलन की आवश्यकता क्यों और इसे कैसे बनाए रखना है इसको भी हमने अच्छी तरह से सीखा है,तो १८ महीने घर के काम में हाथ बंटाना भी सिखा गया। प्रकृति को सहेजना चाहिए,यह सभी जानते हैं,पर उसके प्रभाव का प्रत्यक्ष अनुभव भी इन्हीं १८ महीनों में हुआ है। इन्हीं महीनों में अमीरी-गरीबी का भेद जिस तरह से मिटा है,यानि प्रकृति ने किसी से भेदभाव नहीं किया,वह भी अलग तरह का अनुभव है। इसके अलावा किसी भी बीमारी से पार पाने में मानसिकता का अलग महत्व है। यानि आने वाली किसी भी तरह की विपदा को मजबूती से निपटाने की मानसिक तैयारी कैसी हो,यही हमें इन १८ महीनों में सीखने को मिला है। कोरोना काल में पूजा स्थल बन्द हो जाने से १८ महीनों वाले समय ने उस सर्वशक्तिमान प्रभु का घर पर ही दर्शन- अर्चना करना सिखा दिया तो १८ महीने जीवन का सही मूल्य समझा कर विदा हो गया है।
ऐसे ही प्रायः आम लोग आयुर्वेदिक दवा को अहमियत नहीं देते थे,लेकिन कोरोना के कारण इन बीते १८ महीनों में केवल आम लोग ही नहीं,बल्कि ऐलोपैथिक चिकित्सकों ने भी आयुर्वेदिक काढ़ा उपयोग करने की सभी को नियमित सेवन की सलाह भी दी,यानि हमारे वैदिक काल वाली दवा कितनी कारगर है,यह सभी ने माना।
इन्हीं १८ महीनों ने हमारी सोच,व्यवहार,चिंतन को एक नई अनूठी दिशा प्रदान की है। बीते साल ने हमें स्पष्ट रूप से समझा दिया है कि सही सोच हिम्मत और धैर्य से हम सभी प्रकार की मुसीबतों से राहत पा सकते हैं। इसी सोच अनुसार इस साल टीके आ जाने पर यह सभी लाभार्थियों तक पहुँचाने में हम सभी अपने-अपने स्तर अनुसार सरकार के साथ सहयोग कर अपनी सहभागिता निभा रहे हैं।

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