कुल पृष्ठ दर्शन : 30

वंदनीय पितृपक्ष

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
*******************************************

श्राद्ध, श्रद्धा और हम (पितृ पक्ष विशेष)….

     हमारी सनातन संस्कृति में पितृपक्ष अति महत्वपूर्ण पखवाड़ा है। हर वर्ष शारदीय नवरात्रि के प्रारंभ के आश्विन प्रथम पक्ष के १५ दिन पितरों को समर्पित है। शास्त्रों में इसके महत्व को बताया गया है। भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को कुरूक्षेत्र में कहा था, कि "मानव शरीर की मृत्यु होती है, पर आत्मा कभी नहीं मरती।" आत्माएं अजर-अमर हैं। उन्हें कुछ भी नष्ट नहीं कर सकता। सूक्ष्म रूप में आत्माएं हमारे आसपास रहती हैं। वे भटकती हैं। वे अदृश्य देवता के तरह रहते हैं।‌ वे हमें देखते हैं, हमें आशीष देते हैं। माना जाता है, कि पितर इस पक्ष में धरा पर आते हैं। वैज्ञानिक तरह से देखें, तो यह विचारणीय दिलचस्प विषय है, पर इसकी सत्यता पर सहमति है। 

पितृपक्ष में पितरों की तृप्ति के लिए उनके तर्पण-पूजा करने का विशेष नियम है। हम सब जन्म लेते हैं, माता-पिता लालन-पालन करते हैं। जीवन यात्रा में माता-पिता, रिश्तेदार, दोस्त, सखी सब अंत में अपना शरीर छोड़ देते हैं। मृत्यु परम सत्य है। जिनसे हमने शरीर पाया, उनको श्रद्धा से याद करने की यह प्रथा अनुपम वंदनीय है।
कहते हैं कि पूर्वजों की सूक्ष्म आत्माएं इस समय अपने घरों पर आते हैं। वर्षभर जीवन की यात्रा में हम सब अपने सामने देखे हुए पूर्वजों को याद तो रखते हैं, पर उनके पहले जो थे, उनको शायद ही याद करते हैं। उनका नाम भी नहीं जानते हैं, पर पितृपक्ष में श्राद्ध- तर्पण में उनके साथ पूर्व की ७ पीढ़ियों को याद कर जल प्रदान करते हैं। उन्हें तृप्त करने का प्रयास करते हैं, साथ ही अपने प्रिय मित्र- सखा के लिए भी तर्पण कर उनका स्मरण करते हैं। सभी आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। उनके आशीर्वाद के लिए याचना करते हैं। इस तरह यह बहुत ही विशेष सनातनी हिन्दू प्रथा है। यह विशेष समय हम सबका अपनी जड़ों से जुटे रहने का एक तरीका भी है।
जल, दूध, काला तिल, कुश एवं सफेद पुष्प से तर्पण कर उनको विधिवत जल देना, पिंड बनाना, दिवंगत माता-पिता, दादा-दादी आदि की रूचि का भोजन बनाना, जिसका कुछ हिस्सा गौ माता, श्वान, कागा, चींटीयों को दिया जाता है। ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन दान करने का नियम है। अब कई लोग किसी अनाथालय, किसी वृद्धाश्रम, किसी सामाजिक सेवा वाले संस्थानों को भी पूर्वजों के नाम पर रकम देकर मदद करते हैं, जो सही है।
इस तरह पूर्वजों को याद कर इस ब्रह्माण्ड, इस धरा पर मानव प्राणी, पशुओं, जीवाणुओं का आदर- सम्मान किया जाता है। यह उनसे जु़ड़ने की विधि या प्रक्रिया है। यह आदर-सम्मान सदा बना रहे। हम सबकी पूर्वजों को याद कर ईश्वरीय वरदान-आशीष से जीवन यात्रा चलती रहे, और बच्चों को भी इस आदर भरी सनातनी प्रथा की जानकारी अवश्य देनी चाहिए-
‘स्मृतियाँ जिनकी हृदय द्रवित कराए,
वर्षों बीत गए जिनके आशीष पाए
पितृपक्ष में पूर्वज हैं आए ले आशीष,
जीवात्माओं की तृप्ति हो पुण्य कमाएं।’

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है