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वतन की मिट्टी…

मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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गणतंत्र दिवस विशेष….

देश की रक्षा के लिए जब,
सरहद से आता है बुलावा
तो…क्या होता है संग सिपाही के,
चंद रिश्तों की पोटली
और रक्षा सूत्र कलावा।

जिनमें बंधा होता है,
अनगिनत आशाओं संग दृढ़ विश्वास…
और…,
वीर के पुनः लौट आने की आस…।

कलावे की एक एक गाँठ भी तो,
बना देती है सिपाही को सबल…
तभी तो आसान बना लेता है वो…,
अपने… कठिन…कठिनतम पल…।

आसां कहाँ होता है,ये सफ़र,
जहाँ हर वक़्त,चारों तरफ़…
मंडरा रहा हो मौत का साया,
क़ुर्बान हो जाती अनगिनत साँसें
कोई एक ही तो वापस लौटकर आया…।

ज़रा कल्पना कीजिए,
बर्फ़ की हो ठिठुरती ठंड…
और हो रेगिस्तान की तपन,
तो क्या बनता है उसका सहारा!
कौन देता है उसे बल!
जिसकी वज़ह से सारे संकट को,
वो हँसकर लेता है झेल।

भाल पे लगी वतन की मिट्टी,
हाँ…उसके भाल पे लगी…
उसके अपने वतन मिट्टी ही तो,
बन जाती है उसके रिश्तों की पगडंडी
तभी तो वो झेलता है तपन रेत की…
और निम्नतम डिग्री की ठंडी।

देश की मिट्टी साधारण नहीं,
ये तो है वो पवित्र चंदन…
जो सिपाही के भाल में लगते ही,
स्वयं माँ भारती ही करती है वंदन।

वतन के लिए…जो अपना सब-कुछ,
हँस कर कर देता क़ुर्बान…
इन्हीं सिपाहियों से तो सुरक्षित है,
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान…।
मेरा भारत देश महान,
मेरा भारत देश महान…॥

परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”

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