कुल पृष्ठ दर्शन : 228

You are currently viewing माँ शारदे की अभ्यर्थना से ही ज्ञान व विद्या

माँ शारदे की अभ्यर्थना से ही ज्ञान व विद्या

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
***********************************************

बसंत पंचमी विशेष….

श्रीमद्भागवत-गीता में प्रभु श्रीकृष्ण जी ने स्वयं को ‘ऋतुनाम् कुसुमाकर:’ कहकर बसंत ऋतु की श्रेष्ठता प्रतिष्ठित की है। सभी जानते हैं कि पतझड़ पश्चात बसन्त ऋतु में माघ शुक्ल पंचमी को वसंत पंचमी के अलावा श्रीपंचमी या ज्ञान पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को ज्ञान और कला की देवी माँ सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। इसलिए इस दिन विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा बड़े ही उल्लास व उमंग के साथ की जाती है। मुझे भी बाल्यकाल में माँ सरस्वतीजी की नित्य उपासना हेतु एक स्तुति बताई गई थी,जिसे आज भी प्रतिदिन करता हूँ-
‘यया विना जगत्सर्वम्,शाश्वतजीवनं मृतं भवेत्।
ज्ञानाधि देवी या तस्यै,सरस्वत्यै नमो नम:॥

यया विना जगत्सर्वं,मुकमुन्वत् यत् सदा। वागाधिष्ठात्री या देवी, तस्यै वाण्यै नमो नम:॥

सरस्वती महाभागे,विद्ये कमललोचने। विश्वरूपे विशालाक्षी,विद्यां देहि नमोऽस्तुते॥’
विश्व प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक मैक्स मूलर ने लिखा है-“विश्व की पुस्तकालयों में प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद है। इसी ऋग्वेद में उल्लेख है-‘सरस्वतीं देवयन्तो हवन्ते’ अर्थात् देव-पद के अभिलाषी सरस्वती का आह्वान करते हैं।
पुराणों के अनुसार सरस्वती जी से सप्तविध स्वरों का ज्ञान प्राप्त होता है। इस कारण ही उन्हें सरस्वती कहा जाता है। इसलिए ब्रह्मा,विष्णु,महेश तीनों ही सरस्वती जी को पूजते हैं। हिंदू धर्म के १८ प्रमुख पुराणों में से १ देवी-भागवत में भी सरस्वती जी के बारे में विस्तार से बताया गया है-
‘आदौ सरस्वती पूजा कृष्णेन विनिर्मिता।
यत्प्रसादान्मुनि श्रेष्ठ मूर्खो भवति पंडित:॥’
अर्थ-श्री कृष्ण ने सबसे पहले माता सरस्वती के महत्व का वर्णन किया और कहा कि उनकी पूजा अवश्य की जानी चाहिए,जिसकी कृपा से मूर्ख भी विद्वान हो जाता है।
माँ शारदे की अभ्यर्थना करने पर विद्या,ज्ञान, विवेक,बुद्धि की प्राप्ति होती है। इसलिए यह तो सभी को मानना ही होगा कि,विद्वान व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है। इसे प्रमाणित करने के लिए एक ऐतिहासिक सत्य घटना-
‘हिन्दशिरोमणि पृथ्वीराज चौहान’,जिन्होंने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को १६ बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया,पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ बंदी बनाकर काबुल ले गया और वहाँ उनकी आँखें फोड़ दीं। यह समाचार जानने के बाद राजकवि चन्द बरदाई शिरोमणि से मिलने काबुल कैदखाने पहुँचे। जब उनको दयनीय हालत में देखा तो उनके कोमल हृदय को गहरा आघात लगा और उन्होंने गौरी से बदला लेने की योजना बना डाली। योजनानुसार चन्द बरदाई ने गौरी को अपने प्रतापी सम्राट हिन्द शिरोमणि की एक विलक्षण विद्या शब्दभेदी बाण(आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदना)के बारे में बताते हुए आग्रह किया कि यदि आप चाहें,तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे भेदने का प्रदर्शन स्वयं भी देख सकते हैं।
इस अनोखी विद्या के अवलोकनार्थ गौरी तुरन्त ही तैयार हो गया और उसने आनन-फानन में राज्य में सभी प्रमुख ओहदेदारों को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित कर दिया। निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया। चूँकि,हिन्द शिरोमणि व राजकवि ने पहले ही इस पूरे कार्यक्रम की गुप्त मंत्रणा कर ली थी,इसलिए चन्द बरदाई ने मोहम्मद गौरी से लोहे के ७ बड़े-बड़े तवे निश्चित दिशा और दूरी पर लगवा देने का आग्रह किया,तब गौरी ने वे लगवा दिए। इसके बाद पृथ्वीराज जी को कैद एवं बेड़ियों से आजाद कर बैठने के निश्चित स्थान पर लाया गया और धनुष बाण थमाया गया। इसके बाद राजकवि ने पृथ्वीराज की वीर गाथाओं का बखान करते हुए गौरी के बैठने के स्थान को चिन्हित करते हुए यानि पृथ्वीराज को अवगत करवाने हेतु विरुदावली गाई-
‘चार बाँस,चौबीस गज,अंगुल अष्ठ प्रमान।
ता ऊपर सुल्तान है,चूको मत चौहान॥’
अर्थात् चार बाँस,चौबीस गज और आठ अंगुल जितनी दूरी के ऊपर सुल्तान बैठा है,इसलिए चौहान चूकना नहीं,अपने लक्ष्य को हासिल करो।
इस तरह पृथ्वीराज जी को मोहम्मद गौरी की वास्तविक स्थिति का आंकलन करवा उन्होंने मोहम्मद गौरी की ओर मुखातिब होकर निवेदन किया कि मेरे प्रतापी सम्राट आज यहाँ आपके बंदी की हैसियत से उपस्थित हैं,इसलिए आप इन्हें आदेश दें,तब ही ये आपकी आज्ञा प्राप्त कर अपने शब्द भेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे।
ज्यों ही मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज जी को प्रदर्शन की आज्ञा का आदेश दिया,पृथ्वीराज जी को गौरी किस दिशा में बैठा है,ज्ञात हो गया। उन्होंने तुरन्त बिना एक पल की भी देरी किए अपने एक ही बाण से गौरी को मार गिराया।
बाण लगते ही गौरी उपर्युक्त ऊंचाई से नीचे धड़ाम से आ गिरा और उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। उसके बाद चारों और भगदड़ और हा-हाकार तो मचना ही था,सो इसी का फायदा उठाते हुए हिन्द शिरोमणि प्रतापी सम्राट पृथ्वीराज जी और राजकवि ने निर्धारित योजनानुसार एक-दूसरे को कटार मार कर अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
यह आत्म बलिदान वाली घटना भी ११९२ ई. को बसन्त पञ्चमी वाले दिन ही हुई थी। उपरोक्त घटना से यह भी स्पष्ट है कि बसन्त पंचमी वाला समय ज्ञानवान बनने के लिए संकल्पित होने का अवसर प्रदान करता है।

Leave a Reply