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विरोधाभास में आभास

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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विरोधाभास में आभास है
दर्शन जीवन प्यास है,
ज्योतिर्मय ताप समान
भोर मिलन की आश है।

निश्चित सीमा है अवधि
पश्चात सुखों के है व्याधि,
अति शीत का ताप भी,
तीव्र अग्न-सा पास है।

दु:ख पश्चात श्वाँस सुखों की
अंतर्मन फांस दुखों की,
है जगत ना इनमें कोई
मात्र मन मेरा आभास है।

घटे-घटे हर घट-घट जाए
तारतम्यताएं हर घटना की,
मध्यांतर संग अंत के
परस्पर संधि में भी रास है।

वाष्प संग अग्नि तपिश की,
संग वाष्प शीतलता भी पास है।
अंत वहीं, जहां प्रारम्भ जीवन,
मात्र शून्य-सा आभास है॥

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