दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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लहरा-दो, लहरा-दो,
दुनिया में तिरंगा लहरा-दो।
ट्वेंटी-ट्वेंटी के विश्वकप को,
अबकी बार तो घर ला दो॥
ऑस्ट्रेलिया की मैच पिचों पर,
विश्वयुद्ध घमासान लड़ो।
सेमी और फाइनल को जीतकर,
विजय अभियान में आगे बढ़ो।
खेल-क्रिकेट में दिखाके कौशल,
लोहा अपना मनवा दो।
लहरा-दो, लहरा-दो…॥
‘रोहित’ की सेना दुनिया में,
सब टीमों से है बेहतर।
चहल, ऋषभ, अश्विन या हार्दिक,
हो हुड्डा, श्रेयस, अक्षर।
फील्डिंग में सबके सहयोग से,
फाइनल जीत वो दिलवा दो।
लहरा-दो, लहरा-दो…॥
अर्शदीप, शमी, भुवनेश्वर,
कुशल बॉलिंग के हैं सरताज।
राहुल, रोहित, विराट, सूर्या,
बल्ले को जिन पर है नाज।
बॉल-बल्ले की वो होशियारी,
कार्तिक कीपिंग में दिखला दो।
लहरा-दो, लहरा-दो…॥
डेढ़ अरब आशाएं कहीं फिर,
हार से धुंधली, न हो पाए।
भारत का विश्वास है तुम पर,
जन-जन की शुभकामनाएं।
हंड्रेड प्रतिशत ‘अजस्र’ प्रयास से,
विश्वकप अब तुम ला दो।
लहरा-दो, लहरा-दो,
दुनिया में तिरंगा लहरा-दो।
ट्वेंटी-ट्वेंटी के विश्वकप को,
अबकी बार तो घर ला दो।
लहरा-दो, लहरा-दो…॥
परिचय-हिन्दी-साहित्य के क्षेत्र में डी. कुमार ‘अजस्र’ के नाम से पहचाने जाने वाले दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्म तारीख १७ मई १९७७ तथा स्थान बूंदी (राजस्थान) है। आप सम्प्रति से राज. उच्च माध्य. विद्यालय (गुढ़ा नाथावतान, बून्दी) में हिंदी प्राध्यापक (व्याख्याता) के पद पर सेवाएं दे रहे हैं। छोटी काशी के रूप में विश्वविख्यात बूंदी शहर में आवासित श्री मेघवाल स्नातक और स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद इसी को कार्यक्षेत्र बनाते हुए सामाजिक एवं साहित्यिक क्षेत्र विविध रुप में जागरूकता फैला रहे हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है, और इसके ज़रिए ही सामाजिक संचार माध्यम पर सक्रिय हैं। आपकी लेखनी को हिन्दी साहित्य साधना के निमित्त बाबू बालमुकुंद गुप्त हिंदी साहित्य सेवा सम्मान-२०१७, भाषा सारथी सम्मान-२०१८ सहित दिल्ली साहित्य रत्न सम्मान-२०१९, साहित्य रत्न अलंकरण-२०१९ और साधक सम्मान-२०२० आदि सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। हिंदीभाषा डॉटकॉम के साथ ही कई साहित्यिक मंचों द्वारा आयोजित स्पर्धाओं में भी प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं सांत्वना पुरस्कार पा चुके हैं। ‘देश की आभा’ एकल काव्य संग्रह के साथ ही २० से अधिक सांझा काव्य संग्रहों में आपकी रचनाएँ सम्मिलित हैं। प्रादेशिक-स्तर के अनेक पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं स्थान पा चुकी हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य एवं नागरी लिपि की सेवा, मन की सन्तुष्टि, यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ की प्राप्ति भी है।