डॉ. सोमनाथ मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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चीन के पूर्व अध्यक्ष माओ त्से-तुंग ने कहा था कि, ‘राजनीतिक शक्ति बंदूक की नली से निकलती है।’ यह बात उनकी सभ्यता के लिए भले ही सच सिद्ध हो सकती है, पर हमारा देश गांधी जी का है, यहाँ अहिंसावादी तरीके से यह बात सिद्ध हो रही है, जिसके लिए बंदूक की कतई आवश्यकता नहीं है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, जो कहीं भी-जहाँ समाज विरोधी द्वारा उत्पात मचाया गया है, उस मोहल्ले में बुलडोजर या जेसीबी जैसे ही खड़ी करा देते हैं, तुरंत उस मोहल्ले के उपद्रवी तत्व सीधे अपने दोनों हाथ उठाकर पुलिस थाने में जाकर आत्मसमर्पण कर देते हैं। कई लोग तो तख्ती भी टाँगकर थाने पहुँचते हैं।
उनकी देखा-देखी अब भारतवर्ष के हर प्रदेश में अब बुलडोजर-जेसीबी संस्कृति पनपने लगी है। इसका फायदा यह होता है कि कहीं भी किसी भी तरीके से बिना किसी लिखा-पढ़ी के उत्पाती लोग खुशी-खुशी अपना अपराध स्वीकार कर लेते हैं। इसके लिए पुलिसवालों को भी कोई मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती है।
आजकल एक और अहिंसावादी तरीका है, जहाँ पर जब भी कोई उपद्रव हो वहाँ पर पुलिस द्वारा चित्र तो लिया ही जाता है, साथ में मोहल्ले के सीसीटीवी कैमरा का फुटेज भी निकलवा लेते हैं। उसके बाद होती है धर-पकड़ शुरू।
मैंने देखा है कि इस उपाय-सूत्र का लाभ मेरे शहर के नगर निगम वाले भी लेने लगे। जहाँ कहीं भी सालों से अवैध निर्माण हुआ था, उस मोहल्ले मे सबेरे-सबेरे एक जेसीबी मशीन रखवा देते हैं। इस मशीन को देखते ही जिन लोगों ने अवैध निर्माण करवाया है, तुरंत समझ जाते हैं और स्व प्रेरणा से अवैध निर्माण ढहा देते हैं। इन सब चीजों को देख कर ऐसा लगता है कि हमारे शहर के नागरिक कितने अनुशासित और कानून को मानने वाले सभ्य नागरिक हैं। निगम के कर्मचारी जेसीबी मशीन कुछ दिन के लिए जब भी किसी मोहल्ले में खड़ी करते हैं और जब देखते हैं कि उनका सभी काम बिना किसी मेहनत से हो गया, तब जेसीबी लेकर दूसरे मोहल्ले में चले जाते हैं।
हमारे एक मित्र हैं सोहन, जो निगम के तोडू दस्ते में हैं। शहर में निगम के क्षेत्राधिकार में जहां कहीं पर भी अवैध कब्जा या निर्माण होने की खबर मिलती थी, वह अपना दस्ता लेकर अवैध निर्माण को तोड़ने पहुँच जाते थे। बहुत बार तोड़ने का विरोध करने वाली जनता से उनकी झड़प हो जाया करती थी, जिसके कारण उनको अक्सर चोट पहुँचती रहती थी। जब भी मैं अपने कार्यालय के लिए घर से निकलता था, तो देखता था कि कभी उनके सिर में, तो कभी हाथ में पट्टी बंधी है। देखकर समझ जाता था कि पिछले दिन कहीं अवैध निर्माण तोड़ने के चक्कर में उनको चोट पहुँची है।
एक बार छुट्टी के दिन हम लोग मिलकर बातचीत कर रहे थे। तब सोहन ने ऐसा कुछ बताया, जिसे सुनकर हम हैरान रह गए। उसने बताया कि पिछले हफ्ते हम अपने तोडू दस्ते के साथ कहीं जा रहे थे, शहर के गोल बाज़ार में पहुँच बुलडोजर एकाएक गो-गो की आवाज़ करते हुए बंद हो गया। सबेरे का वक्त था तो उस समय कोई भी गाड़ी सही करने वाला उपलब्ध नहीं था। एक को खबर की तो उसने जवाब दिया-अभी नहीं आ सकता हूँ, दोपहर के बाद आकर बुलडोजर को बना दूंगा। अब हम कर ही क्या सकते थे, ये तो अच्छा हुआ कि बुलडोजर सड़क के किनारे में जाकर खराब हो गई थी। कहीं बीच सड़क में हो जाती तो व्यस्त बाज़ार में यातायात बाधित हो जाता। अब बुलडोजर को कौन चुरा सकता है भला, यह सोचकर हम सभी उस मशीन को वहीं पर छोड़कर दूसरा काम निपटाने के लिए दफ्तर चले आए।
दफ्तर पहुँचने के बाद मुझे बार-बार लोगों के फोन आने लगे कि, आप लोग अति कर रहे हैं, बिना पूर्व सूचना दिए शहर के महत्वपूर्ण बाज़ार में तोड़-फोड़ करवा रहे हैं। मैं अचंभित था। मैंने बोला-नहीं, आप लोगों को कोई गलतफहमी हो रही है, आज हमारा तोडू दस्ता कहीं पर भी नहीं गया है, पर लोग थे कि मेरी बात मानने का नाम ही नहीं ले रहे थे। वे बार-बार बोल रहे थे-यह आपने अच्छा नहीं किया, आपको बाद में बहुत पछताना पड़ेगा। इस नौकरी में हम ऐसी बात सुनने के आदी थे, इसलिए इसको महत्व नहीं दिया।
हमें बाद में पता चला कि, बाज़ार में बुलडोजर खड़ा देख दुकान खुलते ही दुकानदार अपना-अपना समान जो वे दुकान के बाहर सड़क पर फैलाकर रखते थे, उसे तुरंत ही अंदर रखवा दिया था और नाले के उपर और छज्जा, जो भी नियम विरुद्ध था सभी को स्वत: तुड़वा दिया था। जब शाम के वक्त बाज़ार में मशीन के पास पहुँचा तो देखकर अचंभित रह गया। सड़क के दोनों ओर का रास्ता काफी चौड़ा लग रहा था। दुकान की कोई भी सामग्री दुकान के बाहर नहीं दिख रही थी। यहाँ तक कि कुछ लोग ठेले में रखकर जो समान बेचते थे, उनका भी कोई भी अता-पता नहीं था। अब मुझे बात समझ आई कि क्यों लोग मुझे बार-बार फोन कर परेशान कर रहे थे।
उस दिन के बाद हम लोग जहां कहीं भी अवैध निर्माण या अतिक्रमण देखते है, तब उस मोहल्ले की चाय या पान की दुकान में जाकर यह सूचना दे देते हैं कि, कल निगम की जेसीबी इस मोहल्ले में आने वाली है। बस फिर क्या, महज अफवाह की वजह से ही लोग अपना कब्ज़ा खुद ही तुडवा देते हैं और हमें मेहनत और परेशानी से छुटकारा मिल जाता है।
अब आप लोगों की तरह मुझे भी हमारे देश की हिंसा रहित शक्ति के उदगम के विषय में स्पष्ट रूप से जानकारी मिल चुकी थी।
परिचय- डॉ. सोमनाथ मुखर्जी (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस -२००४) का निवास फिलहाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। आप बिलासपुर शहर में ही पले एवं पढ़े हैं। आपने स्नातक तथा स्नाकोत्तर विज्ञान विषय में सीएमडी(बिलासपुर)एलएलबी,एमबीए (नई दिल्ली) सहित प्रबंधन में डॉक्टरेट की उपाधि (बिलासपुर) से प्राप्त की है। डॉ. मुखर्जी पढाई के साथ फुटबाल तथा स्काउटिंग में भी सक्रिय रहे हैं। रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद से लगातार उपर उठते हुए रेल के परिचालन विभाग में रेल अधिकारी के पद पर पहुंचे डॉ. सोमनाथ बहुत व्यस्त रहने के बावजूद पढाई-लिखाई निरंतर जारी रखे हुए हैं। रेल सेवा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में उप मुख्य परिचालन (प्रबंधक यात्री दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर) के पद पर कार्यरत डॉ. मुखर्जी ने लेखन की शुरुआत बांग्ला भाषा में सन १९८१ में साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता से की थी। उसके बाद पत्नी श्रीमती अनुराधा एवं पुत्री कु. देबोलीना मुख़र्जी की अनुप्रेरणा से रेलवे की राजभाषा पत्रिका में निरंतर हिंदी में लिखते रहे एवं कई संस्था से जुड़े हुए हैं।