प्रिया देवांगन ‘प्रियू’
पंडरिया (छत्तीसगढ़)
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हुआ साल बर्बाद,काल कोरोना आया।
हुए सभी बीमार,कहर दुनिया में छाया॥
कमरे में सब बंद,बैठ कर रहते सारे।
दूर-दूर सब लोग,लगे जैसे बेचारे॥
स्कूल-कॉलेज बंद,पढ़ाई हुई अधूरी।
निकली कुछ तरकीब,ऑनलाइन की पूरी॥
बच्चे बैठे रोज,हाथ मोबाइल पकड़े।
बीमारी भी साथ,सभी बच्चों को जकड़े॥
करे बहाने रोज,हाथ मोबाइल भाये।
खेला करते गेम,पढ़ाई समझ न आये॥
पुस्तक-कॉपी देख,परीक्षा लिखते सारे।
शिक्षक पकड़े माथ,सभी शिक्षा से हारे॥
जो गरीब परिवार,फोन भी पास न होते।
नहीं बैठते शांत,फूट कर बच्चे रोते॥
हुए अधूरे लक्ष्य,देख शिक्षा है पिछड़े।
पुस्तक-कॉपी दूर,बिना बच्चे है बिगड़े॥