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शोर बहुत

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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दायरे और बढ़े ये कोई अच्छा तो नहीं,
वो सुधर जाएगा ऐसा कोई वायदा तो नहीं।

शहर में शौर है सड़कों पे हैं इंसान बहुत,
होने वाला है यहीं आज कोई जलसा तो नहीं।

झूठ को सच में बदलना उसे आता ही नहीं,
आईना आईना है, उसका कोई अपना तो नहीं।

उसने देखा ही नहीं आँख उठाकर मुझको,
ऐसा व्यवहार तो अपना कोई करता तो नहीं।

हर नया मोड़ मुझे और भी तनहा कर दे,
सबका ये हाल है मेरा कोई खासा तो नहीं।

ग़ैर समझे हैं ‘शाहीन’ वही है दिल में,
मुझको अंदाज़ था लेकिन कोई धोखा तो नहीं॥