दीप्ति खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
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नैनों में सपना पलता है,
दिल में छुप कर रहता है
हर रात चुपके से आकर,
सन्नाटे में मचलता है।
नैनों में सपना पलता है…
कभी बचपन की यादें बनकर,
कभी-कभी अधूरी ख्वाहिशें बनकर
कभी मंजिल की बन तस्वीर,
हर रात मुझे वो जगाता है।
नैनों में सपना पलता है…
कभी आशा का दीपक बनकर,
कभी मिलन की आहट बनकर
कभी जीवन की राह दिखाकर,
नींद उड़ा ले जाता है।
नैनों में सपना पलता है…
कभी भिगो देता पलकों को,
बीते लम्हों को याद दिला कर।
कभी बनकर मीठी मुस्कान,
लोरी मधुर सुनाता है॥
नैनों में सपना पलता है…