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सपनों की गठरी मेरा धन

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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सपनों की गठरी मेरा धन है,मैं ही तो हूँ रखवाला,
कोई इसे चुरा ना सके,नहीं चाहिए चाबी-ताला।

आँखें खुली हों या हो बंद,देखे हैं यही सपने,
साकार करूं मैं इनको,खाली नहीं बैठा-ठाला।

जीवन में कुछ करने को,सपने भी जरूरी हैं,
जब होम हुआ जीवन तो,यही बने है ज्वाला।

सपने ही दिखलाते,सुनहरे भविष्य का आईना,
वही सिकंदर बना,जिसने इन्हें सच में ढाला।

सपनों से आशा जगे,कर्म पथ वह राह मिले,
अकर्मण्य शेखचिल्ली का तो यह गड़बड़ झाला।

इतिहास नया लिखते हैं,सपने रचाने वाले,
यह गठरी बोझ नहीं है,है विजय की माला।

देर ना कर ‘देवेश’,अपने सपनों की गठरी उठा,
दुनिया भी मान जाए,यह किससे पड़ा है पाला॥

परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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