संदीप धीमान
चमोली (उत्तराखंड)
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सरलता में अविरल था कभी
बनावट में हट-सा हूँ अभी,
ठहाकों से दूर,मुस्कान भर
मात्र खाली घट-सा हूँ अभी।
भाव मिटे,उर घाव बढ़े
घावों पर अपने ही पाँव पड़े,
पांवों पर भी पड़े हैं छाले
ग्रीष्म रेतीले तट-सा हूँ अभी।
कहने को बहती नदिया-सा
सागर तलक-सा हूँ अभी,
नीर भरोसे बरसातों के
उफ़ानी रट-सा हूँ अभी।
ठहराव नहीं,संग भाव भी
प्यासे को जो पानी पिला दूं,
छाँव कहां मेरे खींसे में
वृक्ष सूखे कंट-सा हूँ अभी।
आत्म पिरोई कालख इतनी
काजल भी फीका पड़ जाए।
हाथ में माणिक माला मेरे,
मात्र राम रट-सा हूँ अभी॥