डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
******************************
जीवन इतना सरल नहीं,
दु:ख-सुख मिलते रहते
हम यूँ ही जीते रहते,
हम यूँ ही जीते रहते।
देखकर ऐसा लगता है,
लोग सहज सरल है जीते
पर अन्तर्मन ही जानता है,
हम घूूँट गरल का पीते।
जीना यहाँ हर हाल में है,
मरने भी नहीं देते
छोटी-छोटी बातों पर
दिल क्यों बोझिल कर लेते।
जीवन इतना सरल नहीं,
दु:ख-सुख मिलते रहते
हम यूँ ही जीते रहते,
हम यूँ ही जीते रहते।
वश ना चला चाहत पर जहाँ,
चुपचाप घूंट खून का पीते
विरह-द्वेष की आग में ना,
जाने कितने लोग हैं जलते।
दुष्ट यहाँ कुछ ऐसे हैं,
जो बाहर से कुछ दिखते
भोलेपन पर हम मरते,
ओर धोखा खाते फिरते।
जीवन इतना सरल नहीं,
दु:ख-सुख मिलते रहते
हम यूँ ही जीते रहते,
हम यूँ ही जीते रहते।
कल क्या हो अनजान बने,
राह पर चलते रहते
बड़ी-बड़ी चाहत के संग,
आश में पलते रहते।
जीवन की इस नैया से,
सुख-दु:ख चुनते रहते
कर्म बंधन से बंधे हुए,
मंज़िल को चलते रहते।
जीवन इतना सरल नहीं,
दु:ख-सुख मिलते रहते।
हम यूँ ही जीते रहते,
हम यूँ ही जीते रहते॥