ऋचा गिरि
दिल्ली
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जीवन स्नान का खेला है…?
या कुम्भ के स्नान का मेला…?
जीवन चक्र जब शुरू हुआ स्नान से,
यही चक्र फिर ख़त्म हुआ स्नान पर।
पहला पाप शुरू करने से पहले,
आखिरी पाप करने के बाद
विडम्बना तो देखो,
दोनों स्नान के लिए हम सक्षम नहीं।
फिर, कुम्भ का स्नान,
कार्तिक स्नान
महाकुंभ का
माघी पूर्णिमा, पौष पूर्णिमा
और महाशिवरात्रि स्नान,
के लिए सक्षम हुए
पर किसलिए ?
जन्म-मरण के स्नान के बीच,
कुछ पुण्य किया जाए
निर्मलता के साथ बिना स्नान के,
अंत तो गंगा स्नान से ही होगा
राख बन कर।
फिर…
जीवन स्नान का खेला है…?
या कुम्भ के स्नान का मेला…?