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स्वर्ग से सुंदर हिन्दुस्थान

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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आओ! मिलकर, हम चलो बनाएं,
स्वर्ग से सुंदर हिन्दुस्थान
विविध-विविध संस्कार भले हों,
विश्व में हो, बस एक पहचान।
आओ! मिलकर…

ना बंटवारा, कभी चाहा हमने,
कभी ना चाही,वो दासता
विश्वधरा से सब अपनाया,
फिर भी जग है पहचानता
संस्कृतियों के मंथन से ही,
देश बनेगा और महान।
आओ! मिलकर…

धर्मगुरु से विश्वगुरु तक,
‘भरत’ परम्परा मिसाल बनी
भारत भूमि से सब कुछ पनपा,
नमन तुझे धन-धन जननी
भारत वो सोने की चिड़िया,
जिसका गूंजे आज भी गान।
आओ! मिलकर…

‘गौतम’ ,’जिन’,’गाँधी’ की भूमि,
सत्य-अहिंसा कण-कण में
देख जिन्हें संसार हो गर्वित,
मिसाल बने हम जग-जन में
मर्यादा पुरूषोत्तम से हम,
आदर्श बनाएं, गाथा-गुणगान।
आओ! मिलकर…

हिंसा-गूंज, क्यों आर्तनाद वो ?
चीत्कार बने जो करुण पुकार
सब मिलकर वो भविष्य गढ़ लें,
जन-जन हो जैसे परिवार
अनेक भले, पर एक बनें हम,
संगठित हो पाएं सम्मान।
आओ! मिलकर…

ठेठ सनातन सृष्टि लेकर,
आज पहुंच है मंगल तक
गीता, ग्रन्थ, कुरान अपनाकर,
आध्यात्म बना इस मंतव तक
‘अजस्र’ फूलों की माला गूंथे,
फूल-फूल सब महक तमाम।
आओ! मिलकर…॥

परिचय-हिन्दी-साहित्य के क्षेत्र में डी. कुमार ‘अजस्र’ के नाम से पहचाने जाने वाले दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्म तारीख १७ मई १९७७ तथा स्थान बूंदी (राजस्थान) है। आप सम्प्रति से राज. उच्च माध्य. विद्यालय (गुढ़ा नाथावतान, बून्दी) में हिंदी प्राध्यापक (व्याख्याता) के पद पर सेवाएं दे रहे हैं। छोटी काशी के रूप में विश्वविख्यात बूंदी शहर में आवासित श्री मेघवाल स्नातक और स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद इसी को कार्यक्षेत्र बनाते हुए सामाजिक एवं साहित्यिक क्षेत्र विविध रुप में जागरूकता फैला रहे हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है, और इसके ज़रिए ही सामाजिक संचार माध्यम पर सक्रिय हैं। आपकी लेखनी को हिन्दी साहित्य साधना के निमित्त बाबू बालमुकुंद गुप्त हिंदी साहित्य सेवा सम्मान-२०१७, भाषा सारथी सम्मान-२०१८ सहित दिल्ली साहित्य रत्न सम्मान-२०१९, साहित्य रत्न अलंकरण-२०१९ और साधक सम्मान-२०२० आदि सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। हिंदीभाषा डॉटकॉम के साथ ही कई साहित्यिक मंचों द्वारा आयोजित स्पर्धाओं में भी प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं सांत्वना पुरस्कार पा चुके हैं। ‘देश की आभा’ एकल काव्य संग्रह के साथ ही २० से अधिक सांझा काव्य संग्रहों में आपकी रचनाएँ सम्मिलित हैं। प्रादेशिक-स्तर के अनेक पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं स्थान पा चुकी हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य एवं नागरी लिपि की सेवा, मन की सन्तुष्टि, यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ की प्राप्ति भी है।

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