डोली शाह
हैलाकंदी (असम)
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शिक्षक समाज का दर्पण…
वाशरूम की टंकी देख नरेश करीब सप्ताह भर से स्वीपर मंगीलाल को बुला रहा था। आज अचानक उनको दरवाजे पर देख -“अरे नमस्कार सर, कैसे हैं ?”
“जी ठीक हूँ। आप लोग सब कुशल मंगल!
“…जी, जी सर।”
“…वो वक्त ही नहीं मिल पा रहा था, जिससे आने में थोड़ा विलंब हो गया।”
“…कोई बात नहीं सर (चेयर आगे करते हुए), आप बैठिए।”
“कहो, क्यों बुलाया था तुमने ?”
“…सर टंकी ओवर लोड हो गई है।”
चौदह वर्षीय बेटा राहुल नज़रें गड़ाए सारी बातें सुनता रहा। कुछ इधर-उधर की बातें भी हुई। तब तक मंगीलाल की पूरी टीम पहुँच चुकी थी। नरेश उन्हें अपने साथ ले जाकर सब-कुछ समझा कर वापस कमरे में आ गया। बेटा राहुल भी पिता के साथ ही आ धमका।
“पापा कुछ पुछूं ?”
“…क्या ? पूछो!”
“…एक बात बताओ। आपने स्वीपर को नमस्कार, फिर सर… क्यों किया ?”
“…बेटा, …क्योंकि वो बड़े हैं-किसी के काम से उसकी इज्जत कम नहीं होती! वो तो किसी जमाने में मेरे शिक्षक भी रह चुके हैं।”
“पापा, लेकिन शिक्षक और आज स्वीपर!” राहुल ने कहा।
“…हाँ बेटा, यही तो वक्त का खेल है। वक्त बदलते देर नहीं लगती। इसलिए, सबका सम्मान करना चाहिए।”
राहुल मौन हो पिता के बगल में गुम-सुम बैठा सोचता ही रह गया…।