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हमसफ़र

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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सफर में एक दिन क्यूँ हमसफर भी छूट जाते हैं,
ग़लतफहमी के मारे दिल के रिश्ते टूट जाते हैं।

कभी कॉलेज से आते हुए जब लेट हो जाऊं,
तो मम्मी मुँह बना लेती है, पापा रूठ जाते हैं।

कोई परखी हुई आहट अगर दर पर सुनाई दे,
न जाने क्यूँ मिरे हाथों से बर्तन छूट जाते हैं।

बड़ी मुद्दत से तेरी सारी बातें नोट करती हूँ,
तिरे वादे बराबर आजकल क्यूँ झूठ जाते हैं।

तू जिस दिन देखता है रास्ते में मुझको मुड़-मुड़कर,
मेरे दिल की ज़मीं पर बेल-बूटे फूट जाते हैं।

मेरे सपने हैं ‘शाहीन’ नींद जो आने नहीं देते,
जो सपने नींद में आते हैं, वो तो टूट जाते हैं॥