कुल पृष्ठ दर्शन : 29

You are currently viewing हम दोनों के दरमियान दीवार

हम दोनों के दरमियान दीवार

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
**************************************

दरमियान हम दोनों के दीवार,
वक्त ने भी कैसी करी है दरकार
सुनता कोई भी नहीं जब होती,
है कोई बात अपना भी नहीं सार।

जब दोस्त की दोस्ती ही नहीं,
तो जहां फीका लगता सब बेकार
न भूख न प्यास न कोई बदलाव,
जीवन नीरस तुम बिन नहीं बहार।

वो खाना-पीना मौज-मस्ती वो,
गॉसिप करना मनोरंजन में समय
बिताना और खुशी के मौके पर वो,
भर-भर यूँ तोहफे और लाना उपहार।

याद आती है बहुत बात तुम्हारी,
वो तुम्हारा मुस्काना बातें बार बार।
किसी भी पल नहीं चैन-सकूं है,
दिल की खुशी का कहाँ है द्वार…?