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हम भी अगर बच्चे होते

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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रंग-ए-जहाँ घानी होता, नानी की कहानी होती,
हम भी अगर बच्चे होते, माँ की निगहबानी होती।

आँख का तारा होता, सबका मैं दुलारा होता,
परियों वाली होती बात, खुशियाँ आसमानी होती।

बनता चाँद पेशानी पर, काजल लगाती पाँव तले,
लेती माँ बलाएँ सौ सौ, वो मेरी दिवानी होती।

हुक्म चलता घर पर मेरा, इन उँगली के इशारों में,
रूठना भी जायज होता, चाँदनी सुहानी होती।

झूले लगते मासूमियत के, झूठ के ना मेले लगते,
गम-ओ-दर्द ठोकर खाता, जिंदगी ना फानी होती।

कहता जो रूहानी होता, सुनता वो पानी होता,
दिन मस्त रूमानी होता, रात भी नूरानी होती।

कम देकर इस बडे़पन ने, छीना हमसे ‘ममता’ बहुत,
वही वक्त थम जाता जरा, बडी़ मेहरबानी होती॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।