अब्दुल हमीद इदरीसी ‘हमीद कानपुरी’
कानपुर(उत्तर प्रदेश)
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अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस विशेष….
नये अब गुल खिलाना चाहती है।
ये खुल कर मुस्कुराना चाहती है।
दिलों में घर बनाना चाहती है।
नहीं कोई ख़ज़ाना चाहती है।
शिकायत हर मिटाना चाहती है।
सियासत को हराना चाहती है।
नहीं कुछ भी पुराना चाहती है।
नये नग़मे सुनाना चाहती है।
अदावत को मिटाना चाहती है।
समय अच्छा बिताना चाहती है।
जहां को जगमगाना चाहती है।
मुहब्बत ही लुटाना चाहती है।
सभी बातें बताना चाहती है।
नहीं कुछ भी छुपाना चाहती है।
हर इक ग़म को भुलाना चाहती है।
हवा में सब उड़ाना चाहती है।
तुरंत रफ्तार पाना चाहती है।
नहीं कोई बहाना चाहती है।
सुकूं सबको दिलाना चाहती है।
सबक़ अच्छा पढ़ाना चाहती है।
नहीं उर्दू से इसका बैर कोई,
विदेशी को हटाना चाहती है।
जड़ें गहरी बहुत इसकी ज़मीं पर,
नहीं अब डगमगाना चाहती है।
जहाँ हिन्दी ही हिन्दी हर तरफ़ हो,
हसीं ऐसा ज़माना चाहती है।
हो जिससे मान भारत का जहां में,
रिवायत हर निभाना चाहती है॥
परिचय : अब्दुल हमीद इदरीसी का साहित्यिक उपनाम-हमीद कानपुरी है। आपकी जन्मतिथि-१० मई १९५७ और जन्म स्थान-कानपुर हैL वर्तमान में भी कानपुर स्थित मीरपुर(कैण्ट) में ही निवास हैL उत्तर प्रदेश राज्य के हमीद कानपुरी की शिक्षा-एम.ए. (अर्थशास्त्र) सहित बी.एस-सी.,सी.ए.आई.आई.बी.(बैंकिंग) तथा सी.ई.बी.ए.(बीमा) हैL कार्यक्षेत्र में नौकरी(वरिष्ठ प्रबन्धक बैंक)में रहे अब्दुल इदरीसी सामाजिक क्षेत्र में समाज और बैंक अधिकारियों के संगठन में पदाधिकारी हैंL इसके अलावा एक समाचार-पत्र एवं मासिक पत्रिका(उप-सम्पादक)से भी जुड़े हुए हैंL लेखन में आपकी विधा-शायरी(ग़ज़ल,गीत,रूबाई,नअ़त) सहित दोहा लेखन,हाइकू और निबन्ध लेखन भी हैL प्रकाशित कृतियों की बात की जाए तो-नीतिपरक दोहे व ग़ज़लें,एक टुकड़ा आज,ज़र्रा-ज़र्रा ज़िन्दगी,क्योंकि ज़िन्दा हैं हम(ग़ज़ल संग्रह) तथा मीडिया और हिंदी (लेख संग्रह) आपके नाम हैL आपको सम्मान में ज्ञानोदय साहित्य सम्मान विशेष है,जबकि उपलब्धि में सर्वश्रेष्ठ लेखक सम्मान,पीएनबी स्टाफ जर्नल(पीएनबी,दिल्ली) से सर्वश्रेष्ठ कवि सम्मान भी हैL आपके लेखन का उद्देश्य-समाज सुधार और आत्मसंतुष्टि हैL