सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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रंग बरसे…(होली विशेष)….
होली में रंगकर, सहेलियों संग खेलकर,
घर पहुंची अपने, गुलाल-सी होकर।
पतिदेव ने झांका, इधर-उधर तांका,
पड़ोसन समझकर, मुझे ही रंग डाला।
मैं अचकचाई, कुछ न कह पाई,
पतिदेव की हिम्मत थोड़ी बढ़ आई।
हाथ थामकर, मिठाई पकड़ाई,
थोड़ा रुक जाइए, अभी मैडम नहीं आई।
नाश्ते संग नौकर से चाय बनवाई,
ना-ना करते-करते, हाथों में ठंडाई पकड़वाई।
सर थामे मैं देख रही, पतिदेव की इश्कियाई,
हाय राम, कैसी बुढ़ापे में है अकल सठियाई।
खूब मिन्नतें कर हमारा खूब सत्कार कराया,
‘आंटी’ कहकर, मेरे ही बच्चों से ‘नमस्ते’ कहलवाया।
अब सहना बहुत मुश्किल हुआ था,
बच्चों से भी ये इश्क़ ना हजम हुआ था।
आखिर बिटिया ने मुस्कुराकर हमारा मुँह धुलवाया था,
तब जाकर पतिदेव का होली का बुखार उतर पाया था॥