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अंग्रेजी का वर्चस्व बनाए रखना चाहते हैं काले अंग्रेज

गोष्ठी…

पटना (बिहार)।

अंग्रेजों के शासन के समय जब अंग्रेज न्यायाधीश होते थे, तब भी यह बात उठी थी कि जनता न्यायाधीश की भाषा सीखे या न्यायाधीश जनता की भाषा सीखें ? तब अंग्रेजी सरकार ने भी यह कहा था कि न्यायाधीशों को जनता की भाषा सीखनी चाहिए। लेकिन आजादी के ८० वर्ष बीत जाने पर भी हमें अपने देश में जनता की भाषा में न्याय के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इसके पीछे अंग्रेज नहीं वे काले अंग्रेज हैं, जो निहित स्वार्थ के कारण जनता की भाषा के बजाय अंग्रेजी का वर्चस्व बनाए रखना चाहते हैं।
विचार-गोष्ठी के मुख्य वक्ता और ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ के निदेशक डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’ ने यह बात कही। मौका रहा वैश्विक हिंदी सम्मेलन द्वारा पटना उच्च न्यायालय में आयोजित विचार-गोष्ठी का, जो ‘हिंदी में न्याय हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ विषय पर राजेंद्र सभागार में अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के साथ की गई। संगोष्ठी में अध्यक्ष पद से बोलते हुए अखिल भारतीय अधिवक्ता कल्याण परिषद के अध्यक्ष धर्मनाथ प्रसाद यादव ने कहा कि हुआ यह है कि अंग्रेज तो चले गए, लेकिन अंग्रेजी और अंग्रेजियत ने यहाँ अपने पाँव जमा लिए हैं। हमें न्यायपालिका सहित देश की व्यवस्था में अपनी भाषाओं को स्थापित करने के लिए संघर्ष करना होगा।
विशेष अतिथि और बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कहा कि न्याय की याचना करने वाले पीड़ितों को उसकी भाषा में न सुना जाए और न्याय भी उसकी भाषा में न हो, तो इससे बड़ा अन्याय और क्या हो सकता है ? क्या इससे देश के कर्णधारों और न्यायकर्ताओं को लज्जा नहीं आती ? भारत में ही ‘भारती’ की यह दशा चिंताजनक है। विशिष्ट अतिथि एवं अपर महाधिवक्ता खुर्शीद आलम ने कहा कि हिंदी एक महान भाषा है, जिसका मूल स्रोत संस्कृत है।
पद्मश्री विमल कुमार जैन ने कहा कि भाषा की बात तो दूर की बात है, अंग्रेजियत का हाल यह है कि पिछले ५० साल से सुनते आ रहे हैं कि अदालत में यह काले कोट वाली वेशभूषा बदली जानी चाहिए और भारत के मौसम के अनुकूल वेशभूषा होनी चाहिए, लेकिन उसे भी हम आज तक नहीं बदल सके। हमें भारत के मौसम और भारत की जनता की आवश्यकताओं के अनुकूल न्याय व्यवस्था को बदलना होगा। वरिष्ठ अधिवक्ता उमाशंकर प्रसाद ने भी संविधान की भाषा संबंधी प्रावधानों पर प्रकाश डाला।
अधिवक्ता एसोसिएशन के संयुक्त सचिव और संपादक रणविजय सिंह ने कहा कि न्यायपालिका द्वारा जिस प्रकार भारतीय भाषाओं को नकारा जा रहा है, उसके विरुद्ध हमें संघर्ष करना होगा और जो अधिवक्ता संघर्ष कर रहे हैं, उनका साथ देना होगा।
कार्यक्रम के संचालक व संयोजक अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद ने न्यायपालिका में अपने हिंदी के संघर्ष के बारे में बताया और कहा कि जब स्वतंत्रता संग्राम के लिए इतने लोगों ने बलिदान दिए तो न्यायपालिका में जनता की भाषा में न्याय के लिए हमें भी कुछ बलिदान तो देना ही पड़ेगा।
कार्यक्रम के दौरान डॉ. गुप्ता द्वारा अध्यक्ष धर्मनाथ सिंह यादव तथा हिंदी सेवी मूरत दास को ‘वैश्विक हिंदी सम्मान’ से विभूषित करने की घोषणा की गई ।
कार्यक्रम में डॉ. गुप्ता द्वारा अधिवक्ताओं और अन्य महानुभावों को शपथ दिलवाई गई कि वे बिहार में न्यायपालिका के हर क्षेत्र में हिंदी की स्थापना के लिए हर संभव प्रयास करेंगे और संघर्ष करने वाले अधिवक्ताओं का तन, मन और धन से साथ देंगे।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)