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अकल्पित देशभक्ति

सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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छत्रपति शिवाजी का पुत्र होना गर्व की बात थी,
‘छावा’, ‘शेर का पुत्र’ की उपर्युक्त उपाधि प्राप्त थी
मराठा साम्राज्य की उर्वरक भूमि में जन्मे योद्धा,
द्वितीय छत्रपति संभाजी की देशभक्ति अकल्पित थी।

सच, क्या गज़ब का वो फौलादी ज़माना था,
जब समय ने वीर संभाजी का गाया तराना था
महाराष्ट्र की पुण्य धरती भी कृत-कृतार्थ हो गई,
जब उसने पुरंदर में महावीर संभाजी को जना था।

उनकी जिजीविषा का तोड़ नहीं दिख रहा था,
पराक्रम, रक्त बनकर रग-रग से बह रहा था
मुख से उनके फिर भी आह तक न निकली,
दर्द महसूस कर कलेजा मुँह को आ रहा था।

क्रूर औरंगजेब जीतकर भी हार चुका था,
संभाजी की देशभक्ति पर मूक शर्मिंदा था
जांबाज मराठा को चालीस दिन जीवित देख,
जुल्म का बादशाह मन-ही-मन आतंकित था।

पहली बार औरंगजेब ने यह जाना था,
किसे कहते हैं देशभक्ति, पहचाना था
डरा-धमका के अनेक युद्ध जीत लिया,
किंतु देशभक्त को नहीं जीता जा सकता था।

हम भारतीय कर्ज तुम्हारा कभी नहीं भूलेंगे,
तुम्हारी देशभक्ति अपने गर्म रक्त से सींचेंगे।
लहू उफन-उफनकर ये दावा रोज ही करता,
तुम जैसे अदभुत पूर्वज पर गर्व निरंतर करेंगे॥