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अनुकम्पा बरसाओ

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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मेघ, सावन और ईश्वर…

रिमझिम बरसो सावन तुम, ईश्वर की अनुकम्पा बरसाओ
शीतल-शीतल बूँदों के परस से, धरती की तपन बुझाओ।

काले-काले मेघा ला कर, षड ऋतुओं का एहसास कराओ
डाल-डाल पर जमी धूल को, निज बारिश फुहार से धुलाओ।

वन उपवन में हरियाली ला, तृषित धरा की प्यास बुझाओ
बुद्धि बल पर इठलाते मानव को, ईश्वर का एहसास कराओ।

दादुर, मयूर, पपिहरा के स्वरों से, धरती को स्वरमयी कराओ
वन, उपवन, पहाड़ों में फूल खिला, ईश्वरता का भान कराओ।

जो कहते हैं विज्ञान है सब-कुछ, उनको उसका सार बताओ।
कुदरत काया है उस ईश्वर की, नादान लोगों को तुम समझाओ॥