दिल्ली
***********************************
भारत का लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यह केवल संख्याओं और मतों का खेल नहीं है, बल्कि एक ऐसी जीवंत प्रक्रिया है जिसमें सत्ता और विपक्ष दोनों की समान रूप से महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सत्ता पक्ष जहां शासन संचालन और नीतियों को लागू करने के लिए जिम्मेदार होता है, वहीं विपक्ष प्रहरी बनकर उसके हर कदम पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है, असंतोष को स्वर देता है और जनभावनाओं को दिशा देता है, पर वर्तमान विपक्ष इन भूमिकाओं में नाकारा साबित हो रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्ष अपनी ही बिसात पर मात खा रहा है, जिस तरह से विपक्ष और विशेषतः कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मत चोरी, ईवीएम में गड़बड़ी एवं मतदाता सूचियों के विशेष गहन परीक्षण पर आधारहीन आरोप लगाए हैं, उससे संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग की गरिमा एवं प्रतिष्ठा तो आहत हुई ही है, विपक्ष की भूमिका भी कठघरे में दिख रही है। यह अच्छा हुआ कि मुख्य चुनाव आयुक्त ने राहुल गांधी के आरोपों का न केवल बिन्दुवार जबाव दिया, बल्कि उन्हें बेनकाब करते हुए यह भी कहा कि वे या तो अपने निराधार आरोपों के सन्दर्भ में शपथ पत्र दें या ७ दिन के भीतर देश से माफी मांगें। निश्चित ही राहुल गांधी को ऐसी चेतावनी देना आवश्यक था, क्योंकि वे अपने संकीर्ण एवं स्वार्थी राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए लोकतंत्र की संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा को धुंधलाने की सारी हदें पार चुके हैं।
हाल के दिनों में जिस तरह चुनाव आयोग, मतदाता सूची और मत चोरी के आरोपों को लेकर बहस छिड़ी है, उसने इस प्रश्न को फिर से गहराई से सोचने को बाध्य किया है कि लोकतंत्र में विपक्ष बेबुनियाद आरोप लगाते हुए अपनी भूमिका को प्रश्नों के घेरे में कब तक डालता रहेगा ? विपक्ष ठोस प्रमाण के बिना बड़े आरोप लगा लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़े कर देता है। क्या जनहित के नाम पर जनता के व्यापक हित से जुड़े सुधारों का विरोध करना विपक्ष का शगल बन गया है ? एक दशक से विपक्ष लोकतंत्र को सशक्त बनाने की अपनी भूमिका की बजाय उसे कमजोर एवं जर्जर करने में जुटा है। उसने सत्ता-पक्ष को घेरने के लिए जरूरी मुद्दों को सकारात्मक तरीकों से उठाने की बजाय विध्वंसात्मक तरीकों से विकास के जनहितकारी मुद्दों को भी विवाद का मुद्दा बनाते हुए सारी हदें पार कर पार दी है। आधार को बैंक खाते से जोड़ने का मामला हो या अनुच्छेद ३७० को खत्म करना हो, सीएए-एनआरसी का मामला हो या हाल में चुनाव आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन परीक्षण अभियान हो- विपक्ष मोदी सरकार के इन विकासमूलक सुधारों को जनहित के खिलाफ बताते हुए मुखर विरोध कर रहा है, जो लोकतंत्र को धुंधलाने की बड़ी साजिश प्रतीत होती है। निश्चित ही विपक्ष की इस खींचतान में सबसे बड़ी क्षति जनता की आस्था की होती है। जब चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता संदिग्ध बनाई जाती है, तो लोकतंत्र की नींव हिलने लगती है। लोकतंत्र में हार-जीत से भी बड़ा मुद्दा चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता होता है।
विपक्ष केवल सत्ता की आलोचना करने के लिए नहीं है। उसका दायित्व है कि वह जनता की समस्याओं (बेरोजगारी, महंगाई, जीएसटी की अतिश्योक्तिपूर्ण वसूली, पर्यावरण, सफाई, नारी की असुरक्षा जैसे) और ज्वलंत मुद्दों को उजागर करे। ठोस विकल्प प्रस्तुत करे और लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती में योगदान दे। केवल आरोप-प्रत्यारोप में उलझकर यदि विपक्ष अपनी ऊर्जा खर्च कर देता है तो वह जनता का विश्वास खो देता है। यही कारण है कि आज विपक्ष की स्थिति कमजोर मानी जा रही है, क्योंकि वह समाधान प्रस्तुत करने में पिछड़ जाता है। सत्ता पक्ष को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र केवल बहुमत से नहीं चलता, बल्कि सहमति और पारदर्शिता से भी चलता है। यदि विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है तो सत्ता पक्ष का कर्तव्य है कि वह धैर्यपूर्वक उत्तर दे, जाँच के रास्ते खोले और हर आरोप को तथ्यों से परखे। विपक्ष को नकार देना लोकतंत्र को कमजोर करना है। जब सत्ता और विपक्ष के बीच टकराव बढ़ता है, तब न्यायपालिका अंतिम सहारा बनती है। यही कारण है कि आज बार-बार सर्वोच्च न्यायालय से हस्तक्षेप की माँग उठती है। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है, क्योंकि इसका अर्थ है कि जनता और राजनीतिक दल चुनाव आयोग व अन्य संवैधानिक संस्थाओं पर भरोसा नहीं कर पा रहे। इसलिए न्यायपालिका की भूमिका भी अब केवल विवाद सुलझाने की नहीं रह गई है, बल्कि लोकतंत्र के विश्वास को पुनः स्थापित करने की हो गई है, जबकि यह कार्य राजनीतिक दलों एवं चुनी हुई सरकारों का होता है।
लोकतंत्र का सार यही है कि सत्ता और विपक्ष दोनों एक-दूसरे के पूरक हों, शत्रु नहीं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रारंभ से ही विपक्ष को महत्व दिया है। उन्होंने संवेदनशील सरकार के साथ सृजनात्मक नेतृत्व का परिचय दिया है, लेकिन विपक्ष जब आग्रह, पूर्वाग्रह एवं दुराग्रह से घिरा हो तो सकारात्मक दिशाएं कैसे उद्घाटित हो सकती है ? आज की राजनीति में लोकतंत्र और विपक्ष के बीच खींचतान तेज़ है। यह टकराव लोकतंत्र को कमजोर करने वाला नहीं बल्कि उसे और परिपक्व बनाने वाला होना चाहिए। आवश्यकता इस बात की है कि विपक्ष अपनी रचनात्मक भूमिका निभाए और सत्ता पक्ष उसकी आलोचना को स्वीकार कर उत्तरदायित्वपूर्ण जवाब दे। तभी लोकतंत्र की असली शक्ति और जनता के विश्वास को बनाए रखा जा सकता है।