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अभिव्यक्ति से परे…

रश्मि लहर
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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विचार मौन थे!
आकृतियाँ आकर्षित थीं
आतुरताएं भेज रही थीं
एक अनुबंध-पत्र,
उभरने लगे थे शब्द।

प्रतीक्षा परिचित थी,
प्रेम उपज रहा था…
मौसम!
गुलाबी होकर विहॅंस रहा था।

नव-कथाऍं!
लालायित थीं,
व्यक्त होने को।

परिवर्तित भावों पर,
इंन्द्रियाॅं चकित थीं
ध्वनियाॅं,
प्रमुदित थीं।

अनोखी आभा से,
प्रकाशित हो पड़ी थी
रिश्तों की देह!,
अबोध स्वप्नों से सज गया था
यथार्थ का गेह!

मौन चकित था,
उनके होने की आहट पर!
क्षण पूछ रहे थे,
प्रिय
तुम कौन थे ?