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अभी भी वक्त है ‘समझो’…

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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कोठियों पर कोठियाँ, बनकर हुई यहाँ सवार है,
हिमाचल की राजधानी ‘शिमला’ का यह बाजार है।

पहाड़ी की टेकरी पर बसा, हुआ यह निर्माण है,
इन्हीं में प्रबन्धित शहर की, आबादी तमाम है।

देवदार के हरे पेड़ों की बड़ी घनी यहाँ छाँव है,
चारों ओर को कस्बे हैं, दूर-दूर बसे कई गाँव हैं।

कह रहा है यह पहाड़ अब, कमजोर मेरे पाँव है,
रोक दो निर्माण अब मुझ पर, नहीं तो व्यवधान है।

पर शहरीकरण की होड़ में, सुनता इसकी कौन है ?,
लोग किए जा रहे हैं निर्माण, बेचारा रहता मौन है।

बरसात में चेताता है कभी, “भाई दरकते पहाड़ है”,
अभी भी वक्त है ‘समझो’, वरना आगे बड़ा बिगाड़ है।

विकास की अंधेरी दौड़ में, शहरों की होड़ में इंसान है,
उसे कोई लाख समझाए, भले मकान पर बना मकान है।

कुदरत की पीड़ा न समझेगा, फिर तो उठना तूफान है,
इंसान को भी समझना चाहिए, कि वह नहीं भगवान है॥