दिपाली अरुण गुंड
मुंबई(महाराष्ट्र)
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विश्व सौहार्द दिवस स्पर्धा विशेष….

‘ प्रेम,सौहार्द्र ’ यह भावना ही अपने- आपमें मनुष्य को खुश तथा उल्लासित करने वाली है। मनुष्य का मनुष्य से अपनेपन का संबंध तो हम समझ सकते हैं। कुछ लोग मनुष्य के साथ-साथ अपने इर्द-गिर्द रहने वाले प्राणियों से भी सहानुभूति-प्रेम का रिश्ता जोड़ते हैं। आइए,इस कहानी से ऐसे ही स्नेह की भावना का अनुभव लेते हैं-
किसी घने जंगल में आदिवासी जाति के लोग रहते थे। उनका एक राजा था,जिसकी थी एक बेटी। यह बेटी जब ८-९ साल की हुई तो राजा ने उसका विवाह अपनी ही जाति के लड़के के साथ तय किया। विवाह की तैयारियाँ शुरू हुई। एक दिन बेटी ने देखा,उसके घर के सामने बहुत सारे भेड़-बकरे बाँधे हुए थे। बेटी ने अपने पिता से पूछा कि,हमारे घर के सामने इतने भेड़-बकरे क्यों है ?
इनकी दावत विवाह में आने वाले मेहमानों के लिए होगी-यह जवाब पिता ने दिया,तो उसे बहुत बुरा लगा। केवल मेरी शादी के लिए यह जानवर बलि चढ़ेंगे,यह सोचकर वह बहुत व्यथित हुई। उसी रात उसने घर छोड़ने का निर्णय ले लिया। दूसरे दिन सुबह वह घर पर नहीं थी। उसे ढूंढने के लिए पिता ने सभी सैनिकों को जंगल में भेज दिया।
इधर,यह लड़की,जो रात को घर छोड़ आई थी; जंगल में मरे हुए एक जानवर को देख वहीं रुक गई। उस जानवर की खाल जंगल के हिंसक जानवर झपट्टा मारकर खा रहे थे। वहाँ बहुत ही बदबू आ रही थी। शायद पिताजी के सैनिक बदबू वाली जगह पर नहीं आएंगे,सोचकर वह मरे हुए जानवर के पास ही छुप गई। इधर,आदिवासी सैनिक लड़की को ढूंढ थककर उल्टे पाँव लौट गए।
लड़की अब जंगल में दिनभर एक पेड़ पर रहने लगी। उस के पेड़ के नजदीक एक ऋषि का आश्रम था। बहुत सवेरे सूर्योदय से पूर्व यह लड़की पेड़ से नीचे उतरती और आश्रम से लेकर सरोवर का रास्ता साफ करती। उस पर फूल बिखेर देती,व सूर्योदय होने से पूर्व फिर से पेड़ पर बैठ जाती। उसे लगता,यदि मेरी सेवा केवल एक शूद्र जाति की होने के कारण ऋषि-मुनियों ने अस्वीकार की तो ? इसलिए वह सावधानी बरतती। इधर,ऋषि आश्चर्यचकित थे कि,इतने सवेरे सरोवर से लेकर आश्रम तक का रास्ता कौन साफ़ करता है ? लेकिन वह नहीं जान पाए।
वह लड़की युवावस्था से जरा अवस्था तक पहुँची। एक दिन बुढ़ापे की वजह से उसे पेड़ से उतरने में देरी हुई और उसके इस राज को ऋषि जान गए। वे ऋषि थे-मातंग ऋषि। उस बुढ़िया ने अपने जीवन की सारी घटनाएँ मातंग ऋषि से कही । बुढ़िया का प्राणीप्रेम तथा सेवाभाव देख ऋषि की भी आँखें भर आई। उन्होंने उस बुढ़िया को अपने आश्रम में रहने के लिए कुटिया भी दी।
क्या आपको पता है वह बुढ़िया कौन थी ? वह थी रामायण का एक अलौकिक पात्र माता शबरी, जिसने आजन्म भगवान श्री रामचंद्र की प्रतीक्षा की और उन्हें झूठे बेर खिलाए। उन झूठे बेरों में भी स्नेह,ममत्व था। मेरे प्रभु राम को एक भी खट्टा बेर न खाना पड़े,इसलिए वह बेर चख रही थी। प्रभु राम भी बहुत ही आस्थापूर्वक झूठे बेर का चढ़ाया भोग बड़े आनंद से ग्रहण कर रहे थे। सचमुच धन्य प्रभु राम और धन्य माता शबरी का स्नेह..।
