डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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नि:शब्द निर्वाक् आज वह महाप्रणव,
गुम हुआ तिमिर वह शंखनाद
निस्तेज धनंजय गांडीव धनुष शौर्य,
हो कवलित कराल काल गाल।
अवसान बिपिन दुर्जेय सिंह,
जो महाज्वाल अरिध्वंस प्रखर
सीमांत चहुँ निशि दिन रक्षक अविरत,
निर्भीक साहसी धीरज बल।
आत्मनिर्भर सेना साज वतन,
हो महाशक्ति संबलित विश्व पटल
शौर्य चक्र सूर्य न हो अस्ताचल,
अरुणाचल से लद्दाख शिखर।
हो अखंड राष्ट्र तिब्बत गांधार तलक,
अरमान चित्त आवृत्त शिखर
अनुसंधान निरत नव सोच सतत,
मातृभूमि समर्पित जीवन तन मन।
आन बान शान सम्मान वतन,
था माँ भारती लाडला सपूत
अवदान प्रगति चहुँ दिशा वतन,
था बिपिन भीष्म संकल्प अटल।
प्रंचड काल विकराल तुल्य,
कर विदीर्ण शत्रु खल हृदयस्थल
था भीमकाय महारथी महान,
गति वायु तुल्य बिपिन था रणबांकुर।
थी मातु भारती निर्भय सबला,
पा बिपिन पूत गर्वित अचला
महानायक बिपिन था जल थल नभ,
पृथ्वी त्रिशूल ब्रह्मोशी अग्नि सबल।
महायोगी योद्धा शान्ति दूत,
रथयूथपति रण भारत सपूत
तेजस सत्पथ यायावर नित,
वरदान ईश था बिपिन रावत।
दहाड़ सिंह वत घनघोर विकट,
था चला लिखने शौर्य स्वर्णिम अतीत,
गाथा जन गण मन लोकतंत्र,
सत्प्रेरक प्रेरक दिग्दर्शक सैन्य त्रिविध।
पौढ़ी गढ़वाली देवालय सपूत,
आर्यावर्त मुदित लखि क्रान्तिदूत,
था क्षत्रिय शिरोमणि नायक विभूति,
अजेय,अकिंचन संयमित शान्त।
निर्णायक,संवाहक विजय कान्त,
अरुणाभ भानु सम शक्ति पूंज
अनुनादित जग देशभक्ति गूंज,
सेनापति अचूक सम भीष्म अटल।
मति विवेक विदुर सम बिपिन सबल,
किन्तु कुदृष्टि पड़ी कलिकाल कुटिल
रक्षक विमान हुआ भक्षक अम्बर,
दावानल दग्ध वीर विमान सफ़र।
था ले काल खड़ा फंदा कराल,
बलिदान बिपिन सह वीर कहर
तेरह शहीद रणबांकुरा वतन,
नयनाश्रु धार न रुके यतन।
दी जान शहादत बिपिन वृन्द,
हुआ अस्त सूर्य श्रीहीन वतन
अवसान दु:खद खोया सपूत,
बस सिसक रही भारती नयन।
स्तब्ध प्रजा खो ख़ुद संरक्षक,
थी बिपिन विरत अवसीदति मन
आज अश्रुपूरित संवेदना सृजित,
कराहती जनता बस लाड़ला गमन।
किन्तु हर्ष हृदय पा बिकी पूत,
जो रखी लाज निज कोख वतन
पा वीर लोक बन अमर ज्योति,
स्वर्णिम गाथा अनंत शक्ति कीर्ति।
स्वाभिमान बिपिन अभिमान वतन,
सम्मान शहीद नत जयगान मगन
कृतज्ञ राष्ट्र भारत सह जन गण मन,
कर शत शत प्रणाम बहे साश्रु नयन।
पर बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा बिपिन,
होगी पूर्ण ध्येय संरक्ष्य वतन
है राष्ट्र विनत श्रद्धांजलि अर्पण,
हो प्राप्त तुझे गोलोक परम।
तुम शान तिरंगा आन वतन,
कुर्बानी अर्पित होगी जन ज़ान वतन।
हे वीर शौर्य बिपिन! करे ‘निकुंज’ नमन,
दु:खार्त्त कराहता संवेदित मन॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥