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अविस्मरणीय बरसात

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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मैंने शासकीय महाविद्यालय गुना में बीएससी प्रथम वर्ष में १९७६ में प्रवेश लिया था। चूंकि, मैं छोटी जगह से जिला मुख्यालय पर पहुंचा था, तो काफी डरा हुआ था। संकोच में भी था, पर मैं पढ़ाई में बहुत अच्छा था, और अच्छे संस्कारों में पला था इसलिए मुझमें एक आत्मविश्वास भी था।
महाविद्यालय में प्रवेश होने के बाद मैं पैदल ही महाविद्यालय जाने लगा। उन दिनों स्कूटर-मोटर साइकिल की तो बात छोड़ ही दीजिए, साइकिल से भी बहुत कम लोग महाविद्यालय जाते थे। यहाँ तक कि बहुत सारे प्राध्यापक भी पैदल ही महाविद्यालय जाते थे।
जब मैं जुलाई में महाविद्यालय पढ़ने जाने लगा, तो बरसात शुरू हो गई, मैं छाता लेकर महाविद्यालय जाने लगा। ऐसे ही एक दिन मैं महाविद्यालय जा रहा था कि पानी बरसना शुरू हो गया, तो मैंने छाता खोल लिया। तभी देखा कि हमें केमिस्ट्री पढ़ाने वाले पटेल साब भीगते हुए जा रहे हैं। उनके पास छाता नहीं था, तो मैंने उन्हें अपने छाते में आने के लिए कहा, पर उन्होंने संकोचवश मना कर दिया। मुझे यह अच्छा नहीं लगा, कि गुरु भीगते हुए जाएँ और शिष्य छाते में।इस पर मैंने उनसे निवेदन किया कि “सर आप छाता ले लीजिए, मैं तो ऐसे ही ठीक हूँ”, पर इस प्रस्ताव को भी उन्होंने अस्वीकार कर दिया।
मैं बहुत ही पशोपेश में पड़ गया, कि मैं छाते में जाऊँ, और गुरु बिना छाते के… यह भी सही नहीं। फलस्वरूप मैंने छाता बंद किया और मैं भी भीगता हुआ चलने लगा।तो उन्होंने मुझे छाता लगाने के लिए कहा। मैं नहीं माना तो उन्होंने बहुत समझाया, पर मैं नहीं माना। अंततः वे और मैं दोनों ही भीगते हुए महाविद्यालय पहुंचे।
वहाँ पहुंचकर सर ने मुझे स्नेह से देखा और बस इतना ही कहा, कि- “बेटे तुममें जो संस्कार हैं, वे तुम्हें बहुत ऊँचाई तक ले जाएंगे।”

आज मैं महाविद्यालय में स्वयं प्राचार्य हूँ। सोचता हूँ कि पटेल साब के उसी आशीर्वाद की बदौलत ही हूँ उस दिन की अविस्मरणीय बरसात को कभी भी नहीं भूल सकता हूँ।

परिचय–प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।