प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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प्रभु-प्रेमी की राह अलग है,
भोज-भोग चिंतन मन नाहीं
पल पल हिरदय नाम सुलग है,
प्रभु मूरत अंतर-घट माहीं।
आए इस संसार में हम जुड़ने को भगवान से,
बिता उमरिया असमंजस में रहते क्यों अनजान से।
मौन का जग में आश्रय लेकर भक्ति के सुर साध लो,
कभी न खुलने वाला शाश्वत-बंधन प्रभु से बांध लो
शीघ्र ही पूरी जीवन-यात्रा गुजरेगी शमशान से…।
प्रश्न असंख्य हैं जीवन के हर प्रश्न का उत्तर मत दो जी,
आराधक तुम प्रभु चरण के प्रभु तक सीमित रह लो जी
वाणी का बल लुटा के वंचित प्रभु प्रीतम गुणगान से…।
भगवत-चर्चा से नित भक्ति-शक्ति का बल बढ़ जाए,
प्रपंच से बच जाए मनुज निज वाणी का बल बढ़ जाए
मौन बचाता है पग-पग पर ही लौकिक अवमान से…।
वाणी की शुचिता से ही शिव नाम निरंतर मुख वासे,
आए हैं भगवान-भजन उपहास इंद्रियाँ क्यों रासे ?
निंदा, चुगली छोड़ जगत भज शिव पूरे अवधान से…।
इस शरीर को करके दुलारित प्रभु भजन को टाल मत,
प्रभु स्मरण नियम नित्य का उसको कल पर डाल मत
प्रभु भजन को स्वस्थ रहें हम मात्र तनिक से ध्यान से…।
प्रभु प्राप्ति करनी हो तो जीवित में मृत बन के रह,
छोटे-बड़े कष्ट मिल जाएँ प्रसन्नता से उसको सह
आस प्रभु से और आस है उनके दिए अवदान से…।
कोमल वसन नहीं तन चाहे स्वादी भोजन चाहे ना,
प्रभु-प्रीति जिनके मन पैठे इधर-उधर मंडराए ना
प्रभु प्रकट हो जाते हैं एक आर्त भक्त आव्हान से…।
आए इस संसार में हम जुड़ने को भगवान से।
बिता उमरिया असमंजस में रहते क्यों अनजान से…॥