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आखिर क्या है ‘आधुनिकता’… ??

सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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आपने ध्यान दिया है कि आजकल ज्यादातर लोग आधुनिक (मॉडर्न) होना चाहते हैं। क्या बच्चे… क्या जवान… क्या उम्रदराज लोग… सभी इस विचित्र दौड़ में शामिल हैं। और दूसरी तरफ बाजार अटे पड़े हैं ऐसे लोगों की जरूरतें पूरी करने में। अजीबो-गरीब कपड़े, जूते, हार-हमेल, अनोखी डिजाइन के सजने-संवरने की वस्तुओं से लोगों को आधुनिक बनाने के लिए आकर्षित किया जा रहा है।
कितनी ऊहा-पोह जैसी स्थिति पैदा हो गई है। एक अजीब-सी स्पर्धा, एक अंधी दौड़ शुरू हो गई है। युवा वर्ग अंधाधुंध इसकी नकल (फॉलो) कर रहे हैं।
आखिर क्या है आधुनिकता की परिभाषा…? क्या हैं इसके फायदे नुकसान…?? क्यों इतना आवश्यक हो गया है ये चलन…??
जाने-अनजाने हमारे जैसे बहुत लोग इस स्पर्धा में भाग लेते जा रहे हैं। बहुत सोचा मैंने, क्या हमें अपने पहनावे से, व्यवहार से या ज्ञान से, किस बात से आधुनिक होना चाहिए। क्या लगता है, केवल ऊल-जलूल पहनावे से आप आधुनिक बन सकते हैं…?

चलो ठीक है, आप भी समय के हिसाब से चलना चाहते हैं, ये उचित भी है, किंतु केवल अंधानुकरण करके कोई व्यक्ति आधुनिक नहीं बन सकता। एक उचित पहनावा… जिसमें आपकी गरिमा झलके, एक स्वस्थ सोच…, जो आपको प्रभावशाली बनाए, मिलनसार मृदु व्यवहार और मौलिक सोच… जिसमें नकल का सर्वथा अभाव हो, ऐसे कुछ हुनर अपनाकर आप अवश्य आधुनिक बन सकते हैं। केवल पहनावे और विभिन्न आडम्बर से कोई भी आधुनिक नहीं बनता। ये केवल फूहड़ता होगी, जो आपको अपूर्ण और हास्यास्पद ही बनाएगी। आप पारम्परिक तरीके से सज-संवर कर भी अपनी उन्नत सोच से आधुनिक हो सकते हैं। यदि सच में आधुनिक बनना चाहते हैं तो नम्र, सहज और स्वाभाविक रूप में रहें और विशेषकर अपने ज्ञान को, व्यवहार को एवं अपनी सोच को आधुनिक बनाएं।