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आज छवि मैं लिए हाथ में

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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माँ तुमसे बातें करनी हैं,
इसीलिए छवि लिए हाथ में
कितनी बातें तुम्हें बतानी,
मधुर पीर जो लिए हृदय में।

तेरे सौरभ से गृह विलसित,
जीवन पथ हो जाता विकसित
धीरे-धीरे उतर क्षितिज से,
बातें कर हो जाऊँ हर्षित।

जिसने निश दिन मुझे बनाया,
अपनी व्यथा छुपाए मन में
अपनी छाया मुझे बना कर,
सो गई एक दिन चिर निद्रा में।

जिससे कहती सुख-दु:ख सारे,
आज कहाँ मेरा अपनापन
दूर हो गई मुझसे इतना,
सजल नयन फैला सूनापन।

स्नेह भरा झिलमिल पथ मेरा,
पुलकित थीं मेरी राहें।
प्यारा-सा था आँचल माँ का,
पकड़ती मैं तेरी बाँहें॥