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आतंकवाद:अड्डे नष्ट हों, मिलकर प्रयास करें

पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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भारत एक विशाल देश है, जहाँ की विशेषता विविधता में एकता सदा से रही है। हमारा संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है, परंतु कुछ विरोधी लोग विविध संस्कृतियों के अद्भुत सामंजस्य के एकीकरण को तोड़कर देश को बिखेरने का प्रयास करते रहते हैं। वे अपने देश में आतंकी प्रशिक्षण शिविर चला कर हमारे देश में अशांति फैलाने के लिए विविध प्रकार से विघटन करके जनसाधारण को अपने कुकृत्यों से आतंकित कर देते हैं, जिससे समाज में आतंकवादी घटनाएं घटित होती हैं।
आधुनिक युग की सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद है, जिससे केवल हमारा देश ही पीड़ित नहीं है, वरन् लगभग सभी देशों के लिए आतंकवाद बड़ी समस्या है। आतंकवादी अपना समूह बना कर रहते हैं और एक निश्चित विचारधारा को मान कर किसी भी देश की कानून व्यवस्था को स्वीकार नहीं करते हैं। अपने कमांडर की आज्ञा के अनुसार लोगों की हत्या, बम विस्फोट या गोलीबारी करके यह आतंक फैलाया करते हैं।

आज जब हम देश की समस्याओं पर विचार करते हैं तो आतंकवाद की समस्या सबसे प्रमुख दिखाई पड़ती है। हाल ही में २२ अप्रैल को पहलगाम में निरपराध नागरिकों की हत्या से पूरा देश आक्रोशित हो उठा है। आतंकवाद देश रूपी वृक्ष को खोखला करने के प्रयास में लगा रहता है। देश की कुछ अलगाववादी शक्तियाँ और पथभ्रष्ट नवयुवक हिंसा फैला कर देश के बहुत से क्षेत्रों में दंगा-फसाद करा कर अपने स्वार्थ की सिद्धि में लगे हुए हैं।
‘आतंक’ का अर्थ है-भय या डर और ‘वाद’ का अर्थ है पद्धति। समाज को अपने कुकृत्यों से भयभीत कर देना ही आतंकवाद कहलाता है। जो लोग यह कुकृत्य करते हैं, वह आतंकवादी कहलाते हैं। आतंकवादियों का उद्देश्य केवल सरकार और देशवासियों के मन में भय उत्पन्न करके अपनी अनुचित माँगों को मानने के लिए मजबूर करना है। आतंकवादियों का कोई देश, जाति और धर्म नहीं होता, परंतु इजराइल और पहलगाँव के आतंकी हमले से धर्म का एजेंडा स्पष्ट दिखाई देता है।
आतंकवादी भोले-भाले निहत्थे नागरिकों, महिलाओं, बच्चों और वृद्धों की बेरहमी से हत्या करके खुश होते हैं। कानून व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ा कर आतंकवादी देश में अराजकता फैलाने का प्रयास करते हैं। इनके कार्यों का विरोध करने वाले व्यक्तियों या उनके विरुद्ध कार्यवाही करने वाले अधिकारियों को हताहत करने से भी नहीं चूकते हैं, जिससे कि वह भय से उनका विरोध न कर सकें। भारत में आतंकवाद कई स्थानों पर छाया हुआ है, क्योंकि समृद्ध विविधतापूर्ण समाज कई क्षेत्रों में आतंकवाद को पनपने के लिए उर्वर जमीन प्रदान करता है। कट्टर धार्मिक आंदोलन, राजनीतिक और धार्मिक नेताओं की गैर-जिम्मेदाराना बयानबाजी,
मानव अधिकारों का उल्लंघन,
युवाओं में बेरोजगारी का उच्च स्तर, गरीबी, निरक्षरता, आपराधिक न्याय में लंबे समय तक देर लगना भी इसके लिए कारण हैं। अक्सर किसी खास धार्मिक या जातिय समूह से जुड़ी घटनाएं उत्प्रेरक का काम करती हैं और यही घटनाएं हिंसा एवं आतंक के चरम रूपों में शामिल होने के लिए प्रेरित या कट्टरपंथी बनाने में सहायक होती हैं। यही कारण है, कि धार्मिक आतंकवाद की वजह से हिंसा की तीव्रता हमेशा से ज्यादा गंभीर रही है। धार्मिक या जातिय समुदाय की भावनाओं को भड़काने वाले घृणास्पद भाषण पर त्वरित कार्रवाई करने और कड़े कानून की जरूरत है।
भारत अपने पड़ोसियों के साथ खुली सीमाओं और लंबी तटरेखा के कारण आतंकवादियों द्वारा आतंकवाद के प्रति ज्यादा संवेदनशील बना हुआ है। परिणाम स्वरूप आतंकवादियों को कई स्त्रोतों से भौतिक सहायता और धन मिलना जारी है।
भारत ने लगभग सभी प्रकार के आतंकवादी हमलों का सामना किया है, जिसमें विमान अपहरण और विस्फोट, रेलवे पटरियों पर तोड़फोड़, राजनीतिक माँगों के लिए बंधकों का अपहरण, आत्मघाती हमले, २ प्रधानमंत्रियों की हत्या, पूजा स्थलों, परिवहन प्रणालियों, सुरक्षा बलों और वित्तीय केंद्रों पर हमले, सांप्रदायिक दंगे, भयानक हिंसा और आगजनी है।
जम्मू-कश्मीर लंबे समय से आतंकवाद का शिकार रहा है। ९० के दशक में कश्मीरी पंडितों का पलायन इसका उदाहरण है। केन्द्र सरकार जनता को आतंकवादियों से मुक्ति दिलाने के प्रयास में निरंतर लगी हुई है, परंतु कुछ विदेशी शक्तियाँ और हमारे पड़ोसी देश हमारे देश में अव्यवस्था फैलाने के प्रयास में लगे रहते हैं। सशक्त सैन्य शक्ति से सुदृढ़ सरकार का मुकाबला प्रत्यक्ष सामने आकर करना असंभव है, इसलिए आतंकवादी किसी भी सरकार या जनता का सामना आतंक फैला कर करते हैं। आतंकवादी किसी सार्वजनिक स्थान पर अचानक लोगों पर अधाधुंध गोलीबारी करके दहशत फैला कर लोगों को मौत के घाट उतार देते है। यदि अपनी नीति स्पष्ट हो, सुदृढ़ हो और जनता में राष्ट्रीय भावना बलवती हो तो बाहर की कोई शक्ति भारत में हस्तक्षेप करने की हिम्मत नहीं कर सकती है। इसलिए हमारे नेताओं का ढुलमुल रवैया और वोट बैंक की राजनीति ही हम सबको आतंकवाद का शिकार बना रही है।
कश्मीर में आतंकवाद नेहरू जी की कमजोर और गलत नीतियों के कारण फलता-फूलता रहा तो सिक्ख आतंकवादियों का जन्म इंदिरा जी की कुटिल नीति के चलते हुआ। राजीव गाँधी ने तमिल आतंकी प्रभाकरण को शरण दी और उन्हें अपना जीवन गँवाना पड़ा। भारत सरकार को आतंकी गतिविधियों को समाप्त करने के लिए कठोर कदम उठाने की जरूरत है। ऐसा करने के लिए सबसे पहले कानून व्यवस्था को सुदृढ बनाना होगा। जहाँ-जहाँ अंतर्राष्ट्रीय सीमा हमारे देश की सीमा छू रही है, उन क्षेत्रों की नाकाबंदी आवश्यक है, जिसकी वजह से आतंकवादी सीमा पार से हथियार, गोला बारूद, ड्रग्स और प्रशिक्षण प्राप्त करने में असफल हो जाएँ। जो युवक-युवतियाँ अपने मार्ग से भटके चुके हैं, उन्हें समुचित प्रशिक्षण देकर रोजगार के पर्याप्त अवसर देने की व्यवस्था की जाए। यदि युवा वर्ग व्यस्त रहेगा और योग्यता अनुसार कार्य दे दिए जाएँ तो वह गलत रास्ते पर नहीं जाएंगे।
जब आतंकवादियों को अपने षडयंत्रों के लिए जनता का सहयोग नहीं मिलेगा तो वह स्वयं ही नहीं पनप पाएंगे।
आतंकवाद का मुख्य कारण सांप्रदायिकता की भावना है। आजादी के ७७ साल बाद भी लोगों का एक वर्ग संकीर्ण और कट्टर धार्मिक विचारधारा को मानने वाला है। ऐसे लोग ही दूसरों के धर्म के प्रति असहज हो जाते हैं एवं धर्म और राजनीति का घाल-मेल करने की कोशिश करते हैं। जो लोग उनकी धार्मिक पद्धति को नहीं मानते, उनके प्रति वह नफरत की भावना रखते हैं। इस तरह की सांप्रदायिकता की भावना ही आतंकवाद को जन्म देती है। हम सभी जागरूक रहकर भी आतंकवाद को रोकने में सफल हो सकते हैं। यदि स्थानीय जनता का सहयोग न मिलता तो पहलगाम में शायद आतंकी घटना नहीं होती।
कोई भी धर्म किसी की भी निर्मम हत्या करने के लिए नहीं कहता। सभी धर्म मानव से ही नहीं, वरन् प्राणी मात्र से भी प्यार करना सिखाता है। इसलिए जो लोग धार्मिक संकीर्णता से ग्रस्त हैं, उन
को समाज से बहिष्कृत कर देना चाहिए। धार्मिक स्थानों की पवित्रता नष्ट न हो, इसलिए सभी धर्मावलंबियों को एकसाथ मिल कर प्रयास करना चाहिए। तभी धर्म की ओट में आतंकवाद फैलाने वाले लोगों पर अंकुश लगेगा। सरकार को भी धार्मिक स्थलों के राजनीतिक उपयोग पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए।
आतंकवाद ने जाने कितनों का सुहाग उजाड़ दिया और कितनों को अनाथ कर दिया। आतंकवाद मानवता के लिए कलंक है। इसलिए सरकार को आतंकवादियों पर कठोरता से कार्रवाई करना चाहिए। आतंकवादियों के अड्डे पहचान कर इनको समाप्त किया जाए। जब तक इनका देश से नाश नहीं होगा, तब तक यह समस्या नहीं सुलझ सकती।
हमारा देश शांति और अहिंसा की जन्मभूमि है। हिंदू, मुस्लिम सिख व ईसाई सभी भारत माता के सपूत हैं। ऐसे में सभी का कर्तव्य है कि मिलकर आतंकवाद को समाप्त करने के लिए प्रयास करें।