दिल्ली
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आतंकी वित्तीय मदद पर नजर रखने वाली वैश्विक संस्था वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की नई रिपोर्ट में आतंकवादी गतिविधियों में डिजिटल तकनीकों के बढ़ते उपयोग पर चिंता जताई गई है। रिपोर्ट ने वैश्विक सुरक्षा के समक्ष एक नई और गहन चुनौती की ओर संकेत करते हुए आतंकवादी गतिविधियों में डिजिटल तकनीकों के बढ़ते प्रयोग को गहन चिन्ताजनक बताया है। रिपोर्ट में ई-कॉमर्स, ऑनलाइन भुगतान, सोशल मीडिया आदि जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण और संचालन के बढ़ते खतरे पर न केवल प्रकाश डाला गया है, बल्कि गंभीर चिंता जताई गई है। इसने आतंकवाद के एक अलग ही पहलू की ओर ध्यान खींचा है। इसमें बताया गया है कि आतंकी संगठनों की तकनीक तक आसान पहुंच उन्हें और खतरनाक बना रही है। इससे निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर नई रणनीति एवं नियंत्रण नीति की जरूरत है। विशेष रूप से पाकिस्तान जैसे देशों में पलने-बढ़ने वाले आतंकी संगठन इन तकनीकों का उपयोग कर न केवल धन जुटा रहे हैं, बल्कि गोपनीयता और पहुँच के नए मार्ग भी तलाश रहे हैं। भारत ने समय-समय पर पाकिस्तान पोषित आतंकवाद को बेनकाब करते हुए दुनिया से मिल रहे आर्थिक सहयोग पर चिन्ता जताई और कठोर कार्रवाई की मांग की है। ऐसे में रिपोर्ट को भारत के रुख का समर्थन करने वाला एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
एफएटीएफ के मुताबिक २०१९ में पुलवामा और २०२२ में गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में हुए आतंकी हमलों के लिए ऑनलाइन मंच का इस्तेमाल किया गया। पुलवामा में आतंकियों ने आईईडी का इस्तेमाल किया और इसे बनाने के लिए एल्युमिनियम पाउडर एमेजॉन से खरीदा गया था। गोरखपुर में हुए हमले में पैसों के लेन-देन में ऑनलाइन जरिया अपनाया गया। गोरखपुर वाले मामले में आतंकी विचारधारा से प्रभावित शख्स ने इंटरनेशनल थर्ड पार्टी ट्रांजेक्शन और वीपीएन सर्विस का उपयोग किया था। वीपीएन डिजिटल तकनीक है, जो इंटरनेट उपयोगकर्ता की पहचान छुपाती है। इससे उसकी वास्तविक पहचान छिप जाती है और वह सेंसरशिप, ट्रैकिंग और भू-गर्भीय प्रतिबंध से बच सकता है। भारत में १२-१४ करोड़ वीपीएन उपयोगकर्ता हैं। वीपीएन का उपयोग कर आतंकी सोशल मीडिया और गुप्त चैनलों के ज़रिए युवाओं को बरगलाने और भर्ती करने का काम करते हैं। कुछ आतंकवादी समूह वीपीएन नेटवर्क का प्रयोग कर सरकारी वेबसाइटों, रक्षा प्रतिष्ठानों और बैंकिंग सिस्टम पर साइबर हमला करते हैं। इस साल ग्लोबल ई-कॉमर्स बाजार के ७ ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। भारत इसमें फिलहाल सातवें क्रम पर है, लेकिन सवाल यह है कि इस डॉटा के बीच अगर कुछ संदिग्ध लोग कुछ हजार डॉलर की खरीददारी करते हैं, जिसका इस्तेमाल आगे जाकर किसी आतंकी हमले में होता है, तो उसे चिह्नित कैसे किया जाए ?
हालिया रिपोर्ट इसी बात को और पुष्ट कर देती है कि आतंकियों ने अपने काम का तरीका बदल लिया है। वे इंटरनेट की दुनिया की ओट ले रहे हैं, जो ज्यादा खतरनाक है। ये माध्यम उन्हें सरकार की नजरों से बचाते हुए सीमाओं के पार धन जुटाने की सहूलियत देते हैं। साथ ही वे अपने नेटवर्क का विस्तार कर रहे हैं। पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे सूची से बाहर भले हो गया हो, लेकिन उसके खिलाफ लगे आरोपों में कोई कमी नहीं आई है। अनेक रिपोर्ट्स और एफएटीएफ इस बात की पुष्टि करती है, कि पाकिस्तान में आतंकी गुटों को डिजिटल इकोसिस्टम का खुले तौर पर उपयोग करने दिया जा रहा है, या कभी-कभी सरकार की मौन सहमति से।
रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि दक्षिण एशिया में भारत सबसे अधिक प्रभावित देश है, जहां डिजिटल माध्यम से न केवल धन, बल्कि मस्तिष्क परिवर्तन और भर्ती का कार्य भी तेजी से हो रहा है। जम्मू-कश्मीर में सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं को आतंकी संगठनों की ओर आकर्षित किया जाता है। उत्तर पूर्व में उग्रवादी संगठनों को डिजिटल भुगतान और चैनलों के माध्यम से सहायता मिलती रही है। एफएटीएफ ने पाकिस्तान समेत उन सभी देशों से अपेक्षा की है, कि वे डिजिटल वित्तीय निगरानी तंत्र को मजबूत करें और आतंकी संगठनों के ऑनलाइन अस्तित्व को समाप्त करने के लिए तकनीकी औजार विकसित करें। एफएटीएफ का चेतावनी के स्वरों में यह भी कहना है कि यदि आतंक के गढ़ एवं आतंकवाद को पोषित करने वाले इन देशों ने इन सिफारिशों पर अमल नहीं किया तो उन्हें ‘उच्च जोखिम क्षेत्र’ की सूची में डाला जा सकता है। भारत को इस डिजिटल आतंकी खतरे से निपटने के लिए सभी सुरक्षा एजेंसियों के समन्वय से एक संयुक्त रणनीति बनानी चाहिए, साथ ही साइबर आतंकवाद पर विशेष बल का गठन, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से आतंकी कंटेंट की पहचान और हटाने के लिए मजबूत कानून, डार्क वेब और फर्जी दान चैनलों की सतत निगरानी आदि कदम उठाने चाहिए।
डिजिटल तकनीक ने जहां मानव जीवन को सरल और तेज़ किया है, वहीं इसका दुरुपयोग करके आतंकवाद को नया चेहरा देने की कोशिशें चिंता का विषय हैं। विशेष रूप से पाकिस्तान जैसे देशों पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना होगा, ताकि वे अपनी धरती पर पनप रहे आतंकवाद एवं डिजिटल आतंकवाद के अड्डों को समाप्त करें। तभी एक सुरक्षित डिजिटल विश्व और शांतिपूर्ण वैश्विक समाज की कल्पना की जा सकती है।