सच्चिदानंद किरण
भागलपुर (बिहार)
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आत्म स्नेह से,
प्रभु के प्रभुत्व में
मिलते हैं,
आत्म बल को
आत्म सम्मान से,
अपनी पहचान।
हर्षित तन-मन,
के चेहरे को
सुकून मिलते हैं,
आर्द होती सारी
मनोबल की,
परछाईयाँ आत्म स्नेह।
कुंठित मन व्यथा,
को खुशी मिले
होते प्रीत अनमोल,
मुरझाई कलियाँ
खिल उठी जब मिले,
पावस की पवन।
हरी-भरी हरियाली,
में खिल जाती
निरोग कायाकल्प,
जब वो हँस जाए
दूसरे के सुख से,
आत्म बोल में।
जीने के पथ सबके,
अपने आप-सा
पर मिले तो एक हो,
कष्ट स्वयं के ही
सखा मिले तो,
सांत्वना जगे दिल में।
आत्म स्नेह है,
मोहब्बत की अटूट
कड़ी जाने-अनजाने,
दिल से दिल
का नाता जुड़े तो,
रक्तिम रिश्ते अति निराले।
पाप-पुण्य के,
अंतराल में मापे
जाते व्यक्तित्व-कृतित्व,
सुखों के दिन
होते क्षणभंगुर के,
दुःख हैं भंवर ढाल।
आत्म स्नेह होते,
वास्तव दीर्घायु में
शतायु से मृत्योपरांत।
जग है जीवन,
है झंझावत के
तो हँस के जीयूं क्यूँ न॥
परिचय- सच्चिदानंद साह का साहित्यिक नाम ‘सच्चिदानंद किरण’ है। जन्म ६ फरवरी १९५९ को ग्राम-पैन (भागलपुर) में हुआ है। बिहार वासी श्री साह ने इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की है। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘पंछी आकाश के’, ‘रवि की छवि’ व ‘चंद्रमुखी’ (कविता संग्रह) है। सम्मान में रेलवे मालदा मंडल से राजभाषा से २ सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ (२०१८) से ‘कवि शिरोमणि’, २०१९ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ प्रादेशिक शाखा मुंबई से ‘साहित्य रत्न’, २०२० में अंतर्राष्ट्रीय तथागत सृजन सम्मान सहित हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया कैलाश झा किंकर स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य अकादमी (भोपाल) से तुलसी सम्मान, २०२१ में गोरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन (उज्जैन) से ‘काव्य भूषण’ आदि सम्मान मिले हैं। उपलब्धि देखें तो चित्रकारी करते हैं। आप विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य होने के साथ ही तुलसी साहित्य अकादमी के जिलाध्यक्ष एवं कई साहित्यिक मंच से सक्रियता से जुड़े हुए हैं।