डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्ल
इन्दौर (मध्यप्रदेश)
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सभी के चेहरों में कितना आनंद झलक रहा… डीजे की धुन पर अपनी अपनी गर्लफ्रेंड के साथ कैसे थिरक रहे!… कुछ के पाँव भी लड़खड़ा रहे…! तभी उसे अपने प्रोफेसर का वह कथन याद आ गया- “… सुन लो ‘डियर’, बियर’ और ‘चियर’ ही जीवन का आनंद नहीं होता!”
उसने तुरंत अपना मोबाइल बंद कर उसे टेबल पर रखा। किताब हाथ में ली, कि इतने में मम्मी उसके समीप आकर बोलीं- “… बेटा कल तू अपने दोस्तों के साथ ३१ दिसंबर मनाने होटल नहीं गया, तो मैंने सोचा कि हम घर में ही फर्स्ट जनवरी की हलवा पार्टी मना लें… आजा, सब मिलकर खाएंगे।”
हलवा खाते हुए उसने मम्मी, पापा और छोटी बहन मुन्नी का जब आनंदित चेहरा देखा तो उसे लगा… कुछ देर पहले जो आनंद उसने अपने दोस्तों के चेहरों पर देखा था, वह कृत्रिम था।