सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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यादें…
हम चाहें तो भी तुम्हें नहीं भूल सकते..!!
तुमने हमें जीना सिखाया,
खुश रहना सिखाया
जिंदादिल बनाया।
बहुत गर्व होता है कि, दुनिया की इतनी भीड़ में ईश्वर ने तुमको हमारे पिता बनाया।
तुम्हारा वो फेवरेट-सा रेडियो जब गाना गाता था ना, “पंछी बनूं उड़ते फिरुं”…, हम तुम्हारी आँखों से दुनिया देखने लग जाते थे। तुम्हारे बताए गए राजकपूर और नर्गिस के किस्से कानों में गूंजने लगते थे। कभी-कभी तो लगता है कि ये तुम्हारे वही पुराने दोस्त हैं.. जिन्हें हम तुम्हारी ही तरह खूब अच्छे से जानते हैं। उनके गानों में हम तुम्हारे साथ बिताया समय सुनते हैं… उनके शब्दों में तुम्हारे जंगल घूमते हैं… हिरन और बायसन से बतियाते हैं.. नदियों-पहाड़ों पर चलते हैं।
तुम्हारी पसंदीदा फिल्में, तुम्हारे पसंदीदा हीरो-हीरोइन, तुम्हारे फेवरेट गानें तुम्हारे साथ घूमे सभी पर्यटन स्थल, हमें आज भी उन्हीं बीते दिनों में पहुंचा देते हैं। हम फिर से तुम्हारे साथ पाटदेव, नागझिरा, चिखलदरा के रेस्ट हाउस में खाना खाते हैं.. वही गरमा-गरम पराठे, बेसन, झटपट, वो मीठी-मीठी सी बासुंदी और खस-खस की सब्जी !!
तुमने हमें जिंदगी के सभी सातों रंग में रंगना सिखाया, फूलों, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों और प्रकृति से प्यार करना सिखाया। हर हाल में जिंदादिल और खुश रहना सिखाया। कभी-कभी ऐसा लगता है कि प्रत्येक पिता को तुमसे यह सीख लेनी चाहिए थी, ताकि उनके बच्चे ज़िंदगी में आनेवाले किसी भी संकट का सामना बहादुरी से कर सकें। गहराई से सोचती हूँ तो लगता है कि उस पुराने समय में भी, तुम बहुत आगे की सोच रखनेवाले, आधुनिक विचारों से ओत-प्रोत और स्त्रियों की स्वतंत्रता के पक्षधर व्यावहारिक इंसान थे।
इतने सुलझे विचारवान लोग बहुत कम देखने में आते हैं। ईश्वर के आशीर्वाद से हमें ये सौभाग्य मिला। ये अवश्य ही पिछले जन्म में किए सर्वश्रेष्ठ पुण्य का उदय होगा। कोई जरूरी नहीं है, कि धरती पर मौजूद प्रत्येक इंसान अतिरिक्त सफलता और ख्याति प्राप्त करें, कई लोग चुपचाप ही अपने निकट की दुनिया को बहुत खूबसूरत बना कर गुमनाम से चल देते हैं।
तुम्हें भूलने की कोई ख्वाहिश नहीं है। तुम हमारे साथ कल भी थे, आज भी हो और हमेशा रहोगे।
आज जब चारों ओर माँ की महिमा का गुणगान किया जाता है, मैं अपने बच्चों की आप जैसे पिता बनना चाहती हूँ, जो माता-पिता, दोनों की संवेदनाओं से युक्त थे।