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आलोकित यह धरा गगन

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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आलोकित कर धरा गगन को,
जन-धन पोषित करता पुलकित
कार्य कुशल यह दिनकर देखो,
करता जीवन सदा संयमित।

अविरत श्रम ही जीवन साधन,
है पवित्र यह स्वयं से शासित
पूर्व दिशा से उदित रश्मियाँ,
बढ़ती जाती प्रतिपल निश्चित।

शीत, ताप और क्षुधा रहित हो,
करता दिग्-दिगंत को पोषित
माँस-पेशियाँ हृष्ट-पुष्ट कर,
जीवन के प्रति सदा समर्पित।

रूप जगत की छाया इसी से,
चिर पवित्र कर्मों से निर्मित
प्रातः उठ करते प्रणाम सब,
युग-युग से यह वंदित-पूजित।

कर्मवीर सूरज की गति ही,
करती जीवन को अनुशासित
सकल सृष्टि के मंगल कर्ता,
तुमसे ही सब कर्म प्रकाशित।

अतः कर्म को प्रथम स्थान दे,
निश्चित ही तुम करो सम्मानित।
समाधान मानव के मन का,
रंजित होए नव पथ ज्योतित॥